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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवाद ही क्यों ?

अध्यात्मवाद ही क्यों ?

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4165
आईएसबीएन :000

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अध्यात्मवाद ही क्यों किया जाए


यहाँ अस्पतालों की निरर्थकता नहीं बताई जा रही है और न यह कहा जा रहा है कि उन्हें न खोला जाए और लाभ न उठाया जाए। प्रतिपादन केवल इतना है कि यदि जन साधारण ने अप्राकृतिक जीवन न छोड़ा-आहार-विहार का असंयम न सुधारा तो उपचार केवल सामयिक चमत्कार उत्पन्न भले ही कर दे, स्वास्थ्य समस्या का स्थायी समाधान न निकलेगा। असंयमी लोग प्रकृति की अवज्ञा का दंड भुगतेंगे और आये दिन बीमार पड़ेंगे। नई बीमारी नई दवा का कुचक्र अपनी धुरी पर यथावत् घूमता रहेगा। संकट टलेगा नहीं।

सफाई कर्मचारी एक ओर कचरा साफ करेंगे, दूसरी ओर वहाँ रहने वाले अथवा उधर से निकलने वाले फिर गंदगी बरसाने लगेंगे। हर आदमी के साथ एक मेहतर घूमे तो बात दूसरी है अन्यथा गंदगी फैलाने की आदत सरकार की सफाई योजना को सफल न होने देगी। मक्खी, मच्छर आदि हानिकारक कीड़े गंदगी की उपज हैं। डी० डी० टी० से एक दिन जितने मच्छर मारे जाएँगे दूसरे दिन सड़ी गंदगी उतने ही नये पैदा कर देगी।

स्वास्थ्य रक्षा के लिए जो उपाय किए जाते हैं वे आवश्यक तो हैं पर पर्याप्त नहीं। होना यह चाहिए कि शिक्षा संस्थाओं से लेकर धर्मतंत्र सहित प्रचार के प्रत्येक साधन में लोकमानस को स्वच्छता, संयम, श्रमनिष्ठा जैसी आरोग्यरक्षक आदतें सीखने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। सामाजिक संगठन वैसा वातावरण बनाएँ और बीमार पड़ना भी एक अपराध घोषित किया जाए। बार-बार बीमार पड़ने वालों को दया का पात्र और सहायता का अधिकारी तो माना जाए, पर साथ ही उनकी असावधानी और अव्यवस्थिता को कड़ाई से कसा भी जाए। जितने प्रयत्न गंदगी साफ करने के लिए किए जाते हैं, जितने प्रबंध चिकित्सा उपचार के होते हैं, उससे भी अधिक प्रयत्न इस स्तर के होने चाहिए कि हर मनुष्य स्वच्छता, संयम, श्रमनिष्ठा जैसे आधारों का महत्त्व ही न समझें वरन् उन्हें जीवन नीति का अंग मानकर चलें। यह कार्य कठिन कहा जा सकता है, पर उतना कठिन नहीं है जितनी कि अस्वस्थता के कारण उत्पन्न होने वाली रुग्णताजन्य पीड़ा और आर्थिक हानि। समस्या के कारण को समझा जाए और उसका स्थिर समाधान ढूँढा जाए तो एकमात्र यही निष्कर्ष निकलेगा कि जीवन यापन की उस पद्धति को अपनाया जाए, जिसे शरीर क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली अध्यात्मिकता कहा जा सकता है। अध्यात्म एक मान्यता है जो विभिन्न क्षेत्र में, विभिन्न रूपों में परिलक्षित होती है। शरीरक्षेत्र में बरती जाने वाली सतर्कता और संयमशीलता को अध्यात्म की प्रेरणा कही जायेगी। यही है वह आधार जिसे अपनाकर स्वास्थ्य संकट से सदा-सर्वदा के लिए छुटकारा मिल सकता है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्मवाद ही क्यों ?

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