आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवाद ही क्यों ? अध्यात्मवाद ही क्यों ?श्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद ही क्यों किया जाए
इनका नियंत्रण जन साधारण का दृष्टिकोण बदलने से ही संभव होगा। आस्तिकता, आध्यात्मिकता, धार्मिकता की आस्थाएँ ही अंतःकरण को परिष्कृत करती हैं और उन्हीं की प्रेरणा से मनुष्य सज्जनता अपनाने के लिए विवश होता है। सुसंस्कृत व्यक्ति पर न सामाजिक अंकुश की आवश्यकता पड़ती है और न सरकारी रोकथाम की। वह आंतरिक सदाशयता से प्रेरित रहता है, अपना स्तर ऊँचा उठाता है और दूसरों को हानि पहुँचाना तो दूर उलटे लोकमंगल के अनेक आधार खड़े करता है।
बढ़ती हुई अनैतिकता का विकसित रूप अपराधों की बाढ़ के रूप में देखा जा सकता है। इसे न संपन्नता रोक सकती है न दंडनीति। अमेरिका की साधन संपन्नता सर्वविदित है फिर भी वहाँ अपराधों का ज्वार ऊपर उठ रहा है। दंडनीति में कमी कहाँ है ?
हर अपराध के विरुद्ध कड़े कानून मौजूद हैं। फिर भी जेलखानों के भीतर तक अपराध होते रहते हैं। सामयिक उपचार जो हो रहे हैं वे उत्साहपूर्वक काम में लाए जाएँ पर साथ ही यह आवश्यकता भी समझी जाए कि मानवी अंतःकरण को सुसंस्कृत बनाने के लिए समस्त साधन झोक दिये जाएँ। चिकित्सा पर होने वाले खर्च की तुलना में अन्न, वस्त्र का खर्च स्वभावतः अधिक होता है। अपराधों की रोकथाम और अपराधियों को दंड देने पर जितना ध्यान दिया और खर्च किया जाता है, उससे कम नहीं अधिक ही प्रयत्न सभ्यता एवं संस्कृति को हृदयगंम कराने के लिए होने चाहिए। इस प्रयत्न को पुराने शब्दों में आध्यात्मिकता का प्रसार कहा जायेगा। वस्तुतः यही वह आधार है, जिसके सहारे हर व्यक्ति को 'पुलिस मैन' बनाया जा सकता है। स्वयं आदर्शवाद अपनाने वाले ही दूसरों को सही नागरिक बनकर रहने के लिए विवश कर सकते हैं। अपनी छाप छोड़कर वे संपर्क क्षेत्र को शालीनता से भरा-पूरा बना सकते हैं। ऐसी दशा में न तो दुष्प्रवृत्ति के पनपने की आशंका रहेगी और न उनकी रोकथाम के लिए उतना खर्चीला ढाँचा खड़ा रखने की आवश्यकता पड़ेगी!
अपराधी दुष्प्रवृत्तियाँ और हेय अवांछनीयताओं का स्थायी उन्मूलन करने के लिए अध्यात्म की पुनः प्राण-प्रतिष्ठा करना न तो असंभव है और न कठिन । वातावरण में व्यक्तियों का अंतरंग और बहिरंग ढाँचा-ढालने की पूरी क्षमता है। समाज के मूर्धन्य व्यक्ति यदि इसकी आवश्यकता अनुभव कर सकें तो बुद्धिजीवी, अर्थशास्त्री, साहित्य सृजेता, धर्माध्यक्ष, शासनाधिकारी एवं कलाकार व प्रतिभाशाली विभूतियों के संयुक्त प्रयास से ऐसा वातावरण सहज ही बन सकता है, जिसमें जनसाधारण को उत्कृष्ट चिंतन एवं आदर्श कर्तृत्व अपनाने की ही इच्छा उत्पन्न हो और वैसे ही कदम उठे।
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- अध्यात्मवाद ही क्यों ?