आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवाद ही क्यों ? अध्यात्मवाद ही क्यों ?श्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद ही क्यों किया जाए
परिवारों के सजन और परिपोषण के लिए अध्यात्म दृष्टिकोण से ही तो परिस्थितियाँ ऐसी बनेंगी, जिसमें पलने वाले आजीवन अपने सौभाग्य को सराहते रहेंगे। विवाह वासना के लिए नहीं, विशुद्ध रूप से दो आत्माओं के बीच घनिष्ठता, मैत्री एवं सहयोग के लिए किए जाएँ और उसी आदर्श को दोनों पक्ष निबाहें तो निश्चित रूप से उनके बीच उच्चस्तरीय आत्मीयता विकसित होगी। वे दोनों हर स्थिति में संतुष्ट रहेंगे और कर्तव्य, उत्तरदायित्व को समझते हुए पूरे परिवार को समुन्नत बनाने में जुटे रहेंगे। ऐसे लोग संतानोत्पादन के लिए लालायित नहीं हो सकते। वे स्वतः ही समझेंगे कि घर के बड़ों की सेवा, बराबर वालों का सहयोग और छोटों को अनुदान देने की जिम्मेदारियाँ पूरा करना आवश्यक है। उनकी पूर्ति के लिए ही जब पर्याप्त धन और समय नहीं है तो अनावश्यक अतिथियों को घुसपैठ क्यों करने दी जाए ?
आधुनिक वातावरण में पनप रहे परिवारों में आये दिन खींचतान, आपाधापी, द्वेष-दुर्भाव का विकृत वातावरण बना रहता है। फलतः उस घुटन में जो भी रहते-पलते हैं दुर्बुद्धि ग्रसित होते जाते हैं। यदि इस स्थिति को बदला जा सके और इस पाठशाला में सद्भावना और सत्प्रवृत्तियों के आधार पर दैनिक कार्य व्यवहार का ढाँचा खड़ा किया जा सके, तो घर का हर व्यक्ति नित्य नियमित रूप से श्रमशीलता, स्वच्छता, मधुरता, मितव्ययिता, सहकारिता, सेवा, सहायता, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता जैसे सद्गुणों को अपनाता और पनपता चला जायेगा। परिवारों की नर्सरी में ठीक तरह उगाया गया पौधा जिस बगीचे में भी लगेगा, जहाँ भी फलेगा-फूलेगा और अपने सुंदर फूलों और मधुर फलों से लदा हुआ वातावरण उत्पन्न करेगा।
परिवारों का सृजन और संचालन अध्यात्म दृष्टिकोण अपनाकर किया जाए, तो उसमें सद्भावना हिलोरें ले रही होंगी, सत्परंपराएँ पनप रही होंगी और उसमें रहने, पलने वाले अपने को धन्य अनुभव कर रहे होंगे, किंतु यदि वासना के लिए विवाह, मोह के लिए संतान, लोभ के लिए उपार्जन और अहंकार का आधिपत्य चरितार्थ किया जा रहा होगा, तो हर घर में नारकीय वातावरण ही बना रहेगा और उसमें दम घुटने जैसी व्यथा सहन करते हुए हर सदस्य क्रमशः अधिक विकृत ही बन रहा होगा।
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- अध्यात्मवाद ही क्यों ?