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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


(३) नाड़ी शोधन प्राणायाम- इस प्राण प्रयोग में तीन बार बायें नासिका से साँस खींचते और छोड़ते हुए नाभिचक्र में चन्द्रमा का शीतल ध्यान, तीन बार दाहिने नासिका छिद्र से साँस खींचते हुए सूर्य का उष्ण प्रकाश वाला ध्यान तथा आखिरी बार दोनों छिद्रों से साँस खींचते हुए मुख से साँस निकालने की प्रक्रिया सम्पादित की जाती है।

मुद्रा पूर्व की तरह दायीं नासिका का छिद्र बन्द करके बायें से साँस खीचें और उसे नाभि चक्र तक ले जायें, ध्यान करें कि नाभि स्थान में पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान शीतल प्रकाश विद्यमान है। साँस उसे स्पर्श कर स्वयं शीतल एवं प्रकाशवान् बना रही है। इसी नथुने से साँस बाहर निकालें व थोड़ी देर साँस रोककर बायीं ओर से ही इड़ा नाड़ी के इस प्रयोग को तीन बार करें। अब दायें नथुने से इसी प्रकार पूरक, अन्तः कुम्भक, रेचक व बाह्य कुम्भक करें व नाभिचक्र में चन्द्रमा के स्थान पर सूर्य का ध्यान करें। भावना कीजिए कि नाभि स्थित सूर्य को छूकर लौटने वाली वायु पिंगला नाड़ी से होते हुए ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न कर रही है, इस क्रिया को भी तीन बार करें। अन्त में नासिका के दोनों छिद्र खोलकर साँस खींचकर व भीतर रोककर मुँह खोलकर एक बार में ही बाहर निकाल दें। प्रारम्भ में ही नाड़ी शोधन का अभ्यास करें, पीछे धीरे-धीरे संख्या बढ़ायी जा सकती है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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