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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
(५) हंसयोग- सोऽहम् साधना- प्राणायाम जहाँ संचय की प्रक्रिया है वहाँ सोऽहम् साधना महाप्राण-ब्रह्मप्राण की प्राप्ति का साधना-विधान है। कारण शरीर के अन्तराल को स्पर्श करने के लिए जिस महाप्राण की आवश्यकता होती है, वह इसी साधना से अर्जित किया जाता है।
हंसयोग में साँस खींचने के साथ अत्यन्त गहरे सूक्ष्म पर्यवक्षण में उतर कर यह खोजना पड़ता है कि वायु के भीतर प्रवेश करते समय सीटी बजने जैसी 'सी' की ध्वनि भी उसी के साथ घुली है। यह ध्वनि प्रकृतिगत नहीं, ब्राह्मी है। इसे कृष्ण वंशीवादन के समतुल्य समझा जाय। भावना यही की जा जाय कि जीवन-सम्पदा पर परिपूर्ण अधिकार ‘सोऽहम् परमेश्वर का है। साँस छोड़ते समय साँप की फुफकार जैसी 'अहम की ध्वनि का अनुभव अभ्यास में लाना होता है, भावना करनी होती है कि अहंता को विसर्जित, निरस्त कर दिया गया। 'अहम्' (ईगो) के स्थान पर 'स' (उस परमेश्वर) की प्रतिष्ठापना हो गई। यह स्थिति अद्वैत वेदान्त दर्शन की है।
निरन्तर आत्मा और परमात्मा के साथ अपने सम्बन्ध को स्मरण रखने के लिए और सम्पर्क सूत्र बनाये रखने के लिए हर साँस के साथ सोऽहम् का अजपा जाप जारी रखा जाय।
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