लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

237 पाठक हैं

आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


(४) फलाहार कल्प

फलों में जिन्हें प्रमुख माना जाता है, वे हैं-आम, खरबूजा, पपीता, छुहारा, जामुन, सन्तरा, केला, शहतूत, फालसा, सेव, नाशपाती, अमरूद, शरीफा। यों तो गूदेदार, ठोस व रसीले फलों में और भी कई हैं पर वे कल्प की दृष्टि से उपयुक्त नहीं। ऊपर वर्णित फलों में भी कुछ ऐसे हैं जो अत्यधिक मँहगे होने के कारण सबके द्वारा लिया जा सकना सम्भव नहीं। फल विटामिन-सी के अच्छे स्रोत हैं। इनमें कैरोटीन व बी-काम्पलेक्स भी प्रचुर मात्रा में होता है। सर्वाधिक प्रयुक्त केला कार्बोहाइड्रेट की दृष्टि से सम्पन्न है। यदि एक ही आहार पर रहना हो तो प्रकृति के निर्धारणानुसार किसी भी एक फल पर आसानी से रहकर एक माह की अवधि पूरी की जा सकती है। फल पथ्य भी हैं, औषधि भी। यह एक प्रामाणिक तथ्य है कि फलों से सिट्रिक एवं अन्यान्य अम्ल रसों के प्रभाव से रोगाणु बच नहीं पाते। इस प्रकार से ये आंत्रशोधक प्रक्रिया के साथ ही साथ बलवर्धन भी करते हैंं। ये शरीर को हितकारी जीवाणु क्लोरा को भी जन्म देते हैंं। फलों की एक विशेषता है कि ये सभी क्षार धर्मी होते हैंं। अम्ल धर्मी खाद्य लेने और अन्यान्य विहार की त्रुटियों के कारण जो अम्ल विष उत्पन्न होता है, फलों का क्षारधर्मी रस उन्हें नष्ट कर देता है। शरीर में संचित यूरिक एसिड (जो गठिया, वात रोग, गुर्दे की बीमारी, हृदय रोग आदि के लिए उत्तरदायी होता है) जैसे विष को भी ये निकाल बाहर करता है। सभी फल अत्यन्त सुपाच्य होते हैं। उनका ताप मूल्य अति अल्प होता है। इसी कारण फलाहार से उपवास करना एक प्रकार की चिकित्सा कहा गया है।

कल्प की दृष्टि से चार फल ही निर्धारित है, उपयुक्त माने गये है-आम, खरबूजा, पपीता एवं अमरूद। आम तो खट्ठा-मीठा फल माना गया है। यह कार्बोहाइड्रेट (११.८ ग्राम प्रतिशत), विटामिन-ए (४८०० यूनिट्स प्रति 900 ग्राम) तथा विटामिन-सी (१ मिली ग्राम प्रतिशत) से युक्त है। मौसम के दिनों में ताजा डाल पर पका आम उपलब्ध हो सकता हो तो शोधन-पोषण की दृष्टि से वह एक सर्वांगपूर्ण आहार है। आम की मंजरियाँ, बौर या पुष्प भी एक प्रकार की औषधि है। इन्हें अतिसार, कफ, पित्त, प्रमेह में दिया जाता है। ये प्रदर नाशक व मलरोधक माने गये हैं। पका आम वीर्यवर्धक, सुखदायक, वातनाशक, वर्ण को सुन्दर बनाने वाला, पित्त शामक, कसैला, अग्नि-कफ तथा शुक्रवर्धक है, श्लेष्मा तथा रुधिर के विकारों को दूर करता है। यह दस्तावर तभी होता है जब कृत्रिम रूप से बनाया जाता है। चूसने वाला आम हल्का, सुपाच्य, विषनाशक व बलवर्धक है जबकि काटा हुआ आम आलस्य बढ़ाता व देर से पचता है। कल्प के लिए आम चसे जा सकने वाले, ताजे, पतले रस युक्त, मीठे ही प्रयुक्त होते हैंं। मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जाती है। अन्तिम समय में धीरे-धीरे मात्रा कम कर दूध लेने लगते हैंं। कल्प काल में यथा सम्भव पानी नहीं लिया जाता। कमजोर व्यक्तियों को समानुपात में प्रारम्भ से दूध साथ लेना हितकारी होता है। जिन्हें शोधन व मेदोनाश अभीष्ट है, वे बिना दूध के आम कल्प करें। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अधिक आमखाने से मंदाग्नि , विषम ज्वर, रक्त विकार, कब्ज भी पैदा हो सकता है। अतः मात्रा धीरे-धीरे ही बढ़ाकर आधा उपवास कर लेना श्रेष्ठ है ताकि पाचन प्रक्रिया पूरी हो सके व कल्प प्रयोजन सम्पन्न हो सके।

आम कल्प स्वस्थ व्यक्ति तो कर ही सकते हैं। संग्रहणी, श्वास, अरुचि, अम्ल, पित्त, यकृति वृद्धि रोगियों में यह विशेष भूमिका निभाता है। क्षय, फुफ्फुस-ब्रण और दौर्वल्य में यह मांस-रक्त-मज्जा बढ़ाता है।

आम्रकल्प की अवधि में यदि वायु शुल अथवा कफ का प्रकोप होता दिखाई पड़े तो अदरक व संघव लवण थोड़ी मात्रा में लेने से सामयिक कष्ट निवारण हो जाता है। इससे यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि शरीर शोधन सामर्थ्य से कहीं अधिक मात्रा में ली जा रही है। आम के रस के साथ जब भी लिया जाय, धारोष्ण गौ दुग्ध ही लिया जाय।

खरबूजा एक सर्वसुलभ सस्ता फल है। जिसका बहुधा कल्प किया जाता है। इसे फलराज या दशागुल भी कहते हैंं। यह सात्वीकरण उत्पन्न करने वाला औषधि समान फल है जो ग्रीष्म ऋत में सब जगह उपलब्ध होता है। आयुर्वेद मतानुसार इसे मूत्रल, बलवर्धक, कोष्ठ शोधक, वीर्यवर्धक, उन्माद नाशक तथा उदर विकार शामक बताया गया है। हृदय रोगियों के लिये यह उत्तम औषधि है। इसका कल्प भी निरापद है। स्त्रियों के गर्भाशय के अपने स्थिति से हटने पर शिराओं पर दबाव से जो सूजन पैदा हो जाती है उस स्थिति में खरबूजे का कल्प लाभ करता है। खरबूजा व दूध एक साथ कभी नहीं लिये जाते। यदि मध्यावधि में दस्त आने लगें तो बीज का छिलका घोंट कर पानी के साथ देने से तुरन्त आराम मिलता है।

खाद्य विज्ञान की दृष्टि से इस फल में ७८ प्रतिशत खाद्य भाग तथा ९५.२ प्रतिशत आर्द्रता होती है। प्रोटीन, वसा, कार्बोज क्रमशः ०.३ ०.२ ३५ ग्राम प्रतिशत तथा विटामिन-ए १९६ यूनिट्स, विटामिन-सी २६ मिलीग्राम कैल्सियम ३२ व फास्फोरस १४ मिलीग्राम प्रतिशत होते हैं। अपनी संरचना व गुणवत्ता की दृष्टि से कल्प प्रयोजन हेतु यह एक श्रेष्ठ फल है। आजकल रसीले फल व अन्य फल जहाँ बासी अवस्था में 'कोल्ड स्टोरेज' से उपलब्ध होते हैंं, वहाँ खरबूजा ताजी अवस्था में ग्रीष्म में उपलब्ध रहता है।

पपीता एक ऐसा फल है जिसमें रेचक एवं ग्राही दोनों ही गुण पाये जाते हैंं। इसका कल्प आमाशय की कमजोरी, अग्निमंदता, कोष्ठबद्धता के रोगी के लिए तथा बवासीर से त्रस्त व्यक्तियों के लिए बहुत लाभदायक रहता है। पके पपीते में ७५ प्रतिशत खाद्य भाग होता है। ९० प्रतिशत आर्द्रता के अतिरिक्त इसमें ०.६ ग्राम प्रोटीन, ०.१ ग्राम वसा, ०.५ ग्राम खनिज लवण प्रति १०० ग्राम तथा ७.२ ग्राम प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है। कैल्सियम १७ मिली ग्राम, फास्फोरस २३ मिली ग्राम, विटामिन 'ए' स६ माइक्रोग्राम, तथा विटामिन सी. ५७ मिली ग्राम प्रतिशत होते हैंं। यह अपने आप में एक समग्र टानिक का फार्मूला है। इसके एन्जाइम अपने आप में चमत्कारी हैं। पाचन संस्थान को वे सबल बनाते हैं तथा बिगड़े हुए संस्थानिक कार्य को पटरी पर लाते हैंं। यकृत वृद्धि में यह औषधि के समान काम करता है। कृमियों को मारने की सामर्थ्य भी इसमें है। यह एक उत्तम रक्त शोधक है। ताजा पपीता जो डाल पर पका हो, धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते हुए लिया जाय एवं सामान्य आहार पर आते समय कम कर दिया जाय।

अमरूद सर्वांग उपयोगी समग्र आहार है। इसे विटामिन 'सी' प्रधान फल माना जाता है। जहाँ नीबू में 9 से ६८ मिली ग्राम प्रति सौ ग्राम विटामिन 'सी होता है, वहाँ अमरूद में ३०० से ४५० मिलीग्राम तक। अधिक पका अमरूद स्वाद में तो मीठा होता है पर खाद संरचना एवं विटामिनों की मात्रा की दृष्टि से अत्यन्त कमजोर। कड़ा छिलके वाला अमरूद अर्ध पक्वता की स्थिति में ही खाया जाना चाहिए। अमरूद के फलों में आर्द्रता ८१.७ प्रतिशत, प्रोटीन्स ०.९ ग्राम प्रतिशत, कार्बोज ११.२ ग्राम प्रतिशत तथा कैल्सियम, फास्फोरस, लोहा क्रमशः १०, २३ एवं १.५ मिलीग्राम प्रतिशत होता है। विटामिन ए इसमें नहीं होता लेकिन बी कॉम्पलेक्स, बी, सी की दृष्टि से सुसम्पन्न है। आयुर्वेद मतानुसार यह मधुर कषाय, शीत, पित्त शामक, कफ, वात वर्धक, मूत्रल व आमाशय शोधक है। पीलिया, मूत्र कृच्छ्र, अश्मरी (पथरी) के लिए यह औषधि है।

इन चारों फलों के अतिरिक्त केला, जामुन, छुआरा, संतरा, शहतूत, फालसा, सेव, नाशपाती, बिल्व एवं शरीफा इत्यादि फलों का भी कल्प परिस्थिति एवं प्रकृति के अनुसार किया जा सकता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book