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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


(५) शाकाहार कल्प

हरी तरकारियाँ हमारे शाकाहारी राष्ट्र का प्रमुख भोजन है। पालक, चौलाई, मेथी, बथुआ, तोरई, परवल, लौकी, टमाटर व ककड़ी ऐसी तरकारियाँ हैं जो सर्वोपलब्ध हैं। इनमें सभी सर्वगुण सम्पन्न है व इनमें से किसी एक पर बने रहना प्रत्येक के लिए सुगम है। ये सभी कैल्सियम, लोहा, कैरोटीन (विटामिन ए, विटामिन सी), राइबोफ्लेबिन एवं फौलिक अम्ल के श्रेष्ठतम स्रोतों में गिनी जाती है। सामान्य स्वास्थ्य को बनाये रखने, विकारों का शोधन करने तथा स्वास्थ्य सम्वर्धन के विविध उद्देश्यों को पूरा करने में उनकी भूमिका सर्व विदित है। मुल व केन्द्र प्रधान खाद्य कार्बोज के स्रोत होते हैंं। इनका स्टार्च पचने में कठिन होता है, अतः इनका कल्प कुछ कठिन है। फिर भी गाजर एवं शकरकन्द ऐसे दो कन्द है जिनका प्रयोग किया जा सकता है।

आयुर्वेद के शाक वर्ग प्रकरण के अन्तर्गत इनका वर्णन करते हुए उन्हें चिकित्सार्थ सर्वोत्तम यथार्थ माना है। चरक, सुश्रुत, बाग्भट्ट, चक्रपाणि, भाव निदा प्रभृति विद्वानों ने इस वर्ग की महत्ता का आयुर्वेद में विस्तार से वर्णन किया है। मूलतः इन सभी के भीतर ९० प्रतिशत भाग जल का होता है। अमिश प्रोटीन व वसा भी उनमें कम होता है लेकिन खनिज लवण तथा विटामिनों की दृष्टि से ये सम्पन्न माने जाते हैंं। देह की कार्य क्षमता बढाने, परिपाक शक्ति को तेजवान बनाने, अस्थि-दाँतों के निर्माण आदि में उनकी भूमिका असंदिग्ध है। इनके भीतर सेल्युलोज नामक पदार्थ यथेष्ट मात्रा में होता है। यह आँतों में उपस्थित मल को सूखने से कड़ा नहीं होने देता। आँतों को सदैव गतिशील बनाये रखना इसका मूल कार्य है। इससे कब्ज व उस विकृति से अन्य अनेकानेक रोगों से निवृत्ति मिलती है। अन्य प्रोटीन प्रधान खाद्य (दालें-अन्नादि) से जो रक्त में अम्लता उत्पन्न होती है, उसका भी निवारण शाक वर्ग में विद्यमान क्षार सत्व से हो जाता है। इनके पत्ते सूर्य से आहार सीधे ग्रहण करते हैंं (फोटो शिन्थेसिस प्रक्रिया द्वारा)। अतः ये मनुष्य के लिए एक परिपूर्ण खाद्य बनाते हैंं। कल्प की दृष्टि से-विशेषकर साधना क्षेत्र में शाकों को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। इनकी कारण शक्ति के बलबूते ही इन्हें यह श्रेय मिला है।

इन शाकों में पालक सर्वाधिक जनप्रिय है। यह विशेष रूप से लोहा (१०.९ मिली ग्राम प्रतिशत), कैल्सियम (७३ मिलीग्राम प्रतिशत) प्रधान पत्तीदार साग है। अन्य खनिज भी इसमें प्रचुर मात्रा में होते हैं। रक्ताल्पता, रक्त पित्त एवं संग्रहणी में यह विशेष रूप से लाभकारी है। यह पथ्य मंम शीतल है। कोष्ठबद्धता, कब्ज, मूत्र सम्बन्धी रोग, गुर्दे के संक्रमणों को इसका क्षार भाग समाप्त कर देता है। यह पीलिया रोग में तथा अर्श में भी विशेष लाभकारी है। हर ज्वर के बाद पालक के रस को लिये जाने का शास्त्रोक्त विधान पूर्णतः विज्ञान सम्मत है। यही आधार इसके कल्प का भी है।

चौलाई एक सस्ता सर्वोपलब्ध साग है। इसमें लोहा लगभग २५ मिली ग्राम प्रतिशत तथा कैरोटीन ५५०० माइक्रोग्राम होता है। अन्यखनिज लवण भी प्रचुर मात्रा में होते हैंं। प्रोटीन व बी कॉम्लेक्स समूह के विटामिन की सन्तुलित मात्रा इसमें है। इसका सूप या पंचांग का कल्प बनाकर खाते हैंं। महर्षि चरक के अनुसार यह रूक्ष, विषघ्न, कफ, पित्त शामक, रक्त पित्तहर, मूत्रल तथा सारक है। प्रदर रक्त, वमन, अर्श में यह विशेष लाभकारी है। इसे संस्कृत ग्रन्थों में तन्डुलीय, मेघनाद, अल्हमारिष नामों से पुकारा गया है। इसका शाक अपने आप में सम्पूर्ण भोजन है। यह मल-मूत्र दोनों को साफ करने वाला श्रेष्ठ निस्सारक व रक्त शोधक है। इसकी जड़ गर्म, कफ नाशक, रजोरोधक, प्रदर निवारक है। एक ही पौधे में दो विपरीत गुण (जड़ गर्म व पत्ते ठण्डे) इसकी एक अद्भुत विशेषता है।

मेथी को मेथिका, दीपनी, मन्था कई नामों से ऋषियों ने सम्बोधित कर कहा है कि यह शाक वात-कफ शामक, ज्वर विनाशक है। यह एक प्रकार का टॉनिक है। संग्रहणी, अग्निमन्दता व वात रोगों के लिए श्रेष्ठ औषधि है। यह रुचिकारक, भूख बढ़ाने वाली, यकृत-पित्ताशय के रसों को बढ़ाने वाली, मल को बाँधने वाली औषधि है। मेथी के पत्ते पित्त शामक व शोथ नाशक होते हैंं तथा बीज कृमि नाशक, मधुमेह नाशक है। मेथी में मूलतः कैल्सियम (३२५ मिलीग्राम प्रतिशत), फास्फोरस (५१ मिलीग्राम प्रतिशत), लोहा (१६५ मिलीग्राम प्रतिशत) तथा कैरोटीन (२३४० माइक्रोग्राम प्रतिशत) होते हैंं। अपनी गुणवत्ता के कारण इसे पथ्य व कल्प हेतु शाकों में उत्तम माना जाता है।

रोगों के निवारण व बल-बुद्धि हेतु मेथी की चर्चा कई स्थानों पर की गयी है। पंच कर्म से शुद्धि के उपरान्त प्रतिदिन एक या दो तोले कच्ची मेंथी, मूंग की दाल व जौ की रोटी का पथ्य रोगी को नित्य दिया जाता है। दूसरे सप्ताह ४ से ८ तोला एवं तीसरे सप्ताह आठ से बारह तोला इस प्रकार बढ़ाते हुए क्रमिक विकास में देखा जा सकता है कि रोगी की भूख खुल रही है एवं जीवनी शक्ति बढ़ रही है। साल भर तक इसके मोदक या सूखे साग का भी सेवन किया जा सकता है। मेधा वृद्धि, रक्त शोधन, जरा निवारण, नवयौवन की प्राप्ति इस कल्प के अतिरिक्त लाभ हैं।

बथुआ उत्तर भारत में अधिक लोकप्रिय साग है। इसे आदि ग्रन्थों में क्षारपत्र, वास्तुक, शाकराज नाम से सम्बोधित किया गया है। सभी आयुर्वेदिक निघण्टुओं में इसका शाकराज नाम से वर्णन है। यह अग्निदीपक, रुचिवर्धक, शुक्रवर्धक, कृमिनाशक तथा त्रिदोष हर है। यह ज्वर मिटाता है, छिपे दोषों को निकाल बाहर करता है। इसमें खनिज लवण (२.६ ग्राम प्रतिशत), कैल्सियम (१५० मिलीग्राम), फास्फोरस (८० मिलीग्राम), लोहा (४.२ मिलीग्राम) तथा कैरोटीन, बी कॉम्लेक्स व सी विटामिनों की भी अच्छी मात्रा होती है। इसका क्षार अंश मल-मूत्र शोधक है। बढ़े यकृत, गम्भीर क्षयरोग, हृदय में रक्तावरोध, जलोदर एवं बवासीर जैसी असाध्य व्याधियों में यह औषधि एवं पथ्य दोनों ही भूमिका निभाता है।

यह सर्वविदित है कि गाजर विटामिन ए, फास्फोरस तथा कार्बोज का (क्रमशः १८९० माइक्रोग्राम, ५३० मिलीग्राम, ११ ग्राम प्रति १०० ग्राम) उत्तम स्रोत है। इसी प्रकार ककड़ी (कर्कटी) कार्बोज, फास्फोरस तथा थायमिन (२.५ मिलीग्राम, ०.०३ मिलीग्राम प्रति १०० ग्राम) एवं पके टमाटर कैल्सियम, फास्फोरस, कैरोटीन, बी कॉम्पलेक्स व सी समूह (४८, २०, ३५१, ०.१२ एवं २७ यूनिट्स 900 ग्राम) की दृष्टि से सुसम्पन्न है। प्रश्न संरचना का नहीं इनकी खाद्य की दृष्टि से गुणवत्ता, पाचन क्षमता व पाचक रसों को उत्तेजित करने की सामर्थ्य का है। इसी प्रकार परवल. तोरई. लौकी उत्तम शाक हैं एवं संरचना की दृष्टि से समग्र। इनमें से किसी भी एक को अपना खाद्य चुनकर माह भर का कल्प किया जा सकता है। फलाहार से शाकाहार की महिमा अधिक गायी गयी है। वे प्रकृति के और भी समीप है। इनकी उपलब्धि हर मौसम में संभव है।

सुविधापूर्वक इन्हें अपने ही घर आँगन में बोकर हर व्यक्ति बिना पराश्रित हुए यथेष्ट मात्रा में बिना अधिक विकृति किये इनका कल्प कर स्वास्थ्य लाभ तथा साधना पथ्य के दोनों ही प्रयोजन पूरे कर सकता है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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