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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
(६) औषधि कल्प
एक ही अन्न के आहार कल्प की तरह औषधि कल्प का भी अपनी जगह महत्व है। काष्ठ औषधियाँ मात्र चिकित्सा हेतु नहीं दी जाती। वे कल्प साधकों की अन्तःशक्ति को उभारती व जीवनी शक्ति को बढ़ाती हैं। कल्पकाल के ये सभी उपक्रम व्यक्ति के आध्यात्मिक, मानसिक एवं शारीरिक त्रिविध पक्षों के समग्र समुच्चय को परिवर्तित करने के लिए नियोजित माने गये हैं। स्थूल औषधियाँ तो बाह्मोपचार भर कर पाती हैं परन्तु दिव्य वनौषधियाँ अन्तःकरण का भाव कल्प करने में सफल होती हैं।
वनौषधि पंचकर्म चिकित्सांक के विद्वान लेखक पं. हरिनारायण शर्मा वैद्यराज के अनुसार "कल्पेन विधि विशेषण कल्प चिकित्सा" अर्थात् विशेष विधि से की गई चिकित्सा। रसायन सेवन द्वारा कुटी प्रादेशिक एवं वात तापिक विधि से शरीर को नवयौवन प्रदान कर स्फूर्ति भर देने की चर्चा सभी विद्वानों ने समय-समय पर की है। उन सब का मूल उद्देश्य शरीर के शोधन-नव निर्माण पर ही केन्द्रित रहा है। परन्तु मात्र यही कल्प का अर्थ नहीं है। कल्प एक वृहत परिधि में शरीर मन-भाव संस्थान के परिवर्तन की स्थिति का नाम है। इस कार्य में दिव्य औषधियाँ एकाकी प्रयोग के रूप में मनःस्थिति के अनुरूप प्रयुक्त की जाती हैं एवं लाभ पहुँचाती हैं।
तुलसी, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, अश्वगंधा, शतावरी, शुण्ठी, पलाश, वाकुची, गुडूची, आँवला, हरीतकी, निर्गुण्डी, मुण्डी, चित्रक, मूसली, कुमारी, शाल्मकी, काकजंघा, बच लक्ष्मण, ब्रह्मदण्डी, ज्योतिष्मती, पुनर्नवा, त्रिफला, गोक्षुर, विधारा, वासा, मोथा, काकोली, जीवन्ती, बिल्व, भंगराज, अमलतास, चोपचीनी इत्यादि अनेकानेक औषधियों की चर्चा ग्रन्थों में एकाकी अथवा न्यूनाधिक सम्मिश्रण के रूप में कल्प प्रयोजन हेत की गई है। जितनी भिन्नतायें हैं उतनी ही तरह की फलश्रुतियाँ है। मनःसंस्थान के शोधन, सुसंस्कारों की प्रतिष्ठापना, मेधा सम्वर्धन, प्रखरता सम्पादन की दृष्टि से शान्तिकुञ्ज की कल्प साधना में तुलसी, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, अश्वगंधा, शतावरी, आँवला, गिलोय, विधारा, वासा एवं बिल्व इन दस औषधियों को ही प्रयोग में लाया जाता है।
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