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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


भविष्य निर्धारण की आराधना के निमित्त इस अवधि में स्वाध्याय, सत्संग और अन्तर्मुखी चिन्तन मनन के चार प्रयोजनों में निरत रहना पड़ता है। नित्यकर्म उपासना के अतिरिक्त जो भी समय खाली मिले उसमें उन्हीं चार प्रयोजनों में मन को लगाये रहना पड़ता है। इन चारों का लक्ष्य एक ही है-परिष्कार एवं उज्ज्वल भविष्य का योजनाबद्ध निर्धारण। इसके लिए आत्म निरीक्षण, आत्म सुधार, आत्म निर्माण एवं आत्म विकास के चार प्रसंगों पर गम्भीरतापूर्वक समुद्र मंथन जैसा आत्म चिन्तन करते रहना होता है ताकि ईश्वर प्रदत्त अलभ्य उपहार-मनुष्य जन्म का सही उपयोग सम्भव हो सके। इसके लिए शरीर निर्वाह एवं परिवार पोषण की तरह ही परमार्थ प्रयोजनों को महत्व देना होता है। आत्म कल्याण और लोक मंगल की समन्वित जीवनचर्या का निर्धारण एवं सतत अभ्यास ही आराधना है।

परमात्मा को आदर्शों का समुच्चय मानकर उसके साथ तादात्म्य होना उपासना है। जीवन को अधिकाधिक पवित्र एवं प्रखर बनाने वाली सुसंस्कारिता का अवधारण साधना है। लोक मंगल को परमार्थ और उनके सहारे अपनी सत्प्रवृत्तियों का सम्वर्धन ही आराधना है। उपासना परमात्मा की, साधना अन्तरात्मा की और आराधना विश्वात्मा की की जाती है। कल्प काल में बहिर्मुखी माया प्रपंच से अवकाश प्राप्त किया जाता है और उस अवधि में अन्तर्मुखी रह कर अन्तर्जगत का पर्यवक्षण किया जाता है। इस दिशा में परिवर्तन के लिए नियोजित आत्म साधना जितनी भावपूर्ण एवं गम्भीर होगी, उतना ही इस कल्प साधना का प्रत्यक्ष वरदान उपलब्ध होगा।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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