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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
चिकित्सा पक्ष के अतिरिक्त इसकी सूक्ष्म सात्विक सामर्थ्य सर्वविदित है। सामान्य कायाकल्प करने वाले ग्रन्थों में तो मात्र रसायनों की चर्चा है, परन्तु तुलसी जैसी महौषधि तो रसायन कर्म से भी अधिक श्रेष्ठ गुण रखती है। यह आर्षग्रन्थों मात्र में भी वर्णित है। इसके अनेकानेक भेदों में से मात्र रामा या श्यामा तुलसी का ही कल्प हेतु प्रयोग होता है। ५० ग्राम की मात्रा में कल्प में सेवन अतीव लाभकारी सिद्ध होता है।
आधि-व्याधि निवारण शब्द में कुसंस्कार-निष्कासन, स्वास्थ्य-संवर्धन एवं सद्गुण-प्रतिष्ठापन के सिद्धांत गुंथे हुए हैं। शास्त्रकार लिखते हैंं-
त्रिकालम् विनता पुत्र पाशर्य तुलसी यदि।
विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रियाण शतं विना।।
अर्थात-'हे विनता पुत्र। प्रातः, मध्यान्ह तथा शाम को, जो तीनों संध्याओं में तुलसी का सेवन करता है उसकी काया वैसीही शुद्ध हो जाती है, जैसी कि सैकड़ों चान्द्रायण व्रतों से होती है।'
वस्तुतः तुलसी एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक कायाकल्प योग है। शरीर का बाह्य-अभ्यान्तरिक शोधन कर यह सामर्थ्य बढ़ाती है, चिन्तन को सतोगुण प्रधान तथा चरित्र को निर्मल बनाती है। कल्प चिकित्सा विधान में तुलसी पत्रदल चूर्ण को गंगाजल से संस्कारित किया जाता है तथा कल्क रूप में उसे नियमित रूप से ५० ग्राम (लगभग १० चम्मच) की मात्रा में सेवन करने का विधान बनाया गया है।
तुलसी के बाद दिव्यता की वरीयता में ब्रह्मी का नाम दूसरे स्थान पर है। ब्राह्मी के कुटी प्रादेशिक विधि द्वारा कायाकल्प का वर्णन शास्त्रों में आया है। मेधावर्धन, उत्तेजना शमन, तनाव निवारण, वात आदि प्रकोपों से पीड़ित काया के दोषों को नष्ट करने के लिए इससे श्रेष्ठ कोई औषधि नहीं। ब्राह्मी स्वरस को गो दुग्ध में, ब्राह्मीपत्र का शाक, ब्राह्मी को घृत में भून अथवा मुलहटी-इचाइची के सम्मिश्रण से लेने की विभिन्न रोगों में व्यवस्था की जाती है। शुक्लपक्ष में संग्रहीत ब्राह्मीपत्र चूर्ण को गौ दुग्ध के साथ "ॐ अमृतोभवाय अमृतंकुरु" इस मंत्र से अभिमंत्रित कर ग्रहण करने का शस्त्रोक्त विधान भी है। कल्पसूत्रों में ब्राह्मी कल्प को तीस से पचास ग्राम की मात्रा में नित्य प्रातः दिया जाता है। आवश्यकतानुसार इसे दोपहर व संध्या को भी लिया जा सकता है परन्तु कुल सत्व की मात्रा किसी भी स्थिति में दिन भर में पचास ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। बुढ़ापे का नाश, शतायु की प्राप्ति, स्मरण शक्ति में वृद्धि, मनोविकारों से मुक्ति-सभी ब्राह्मी सेवन की फलश्रुतियाँ हैं, जिन्हें साधक धीरे-धीरे अनुभव करने लगते हैंं।
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