|
आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
|
237 पाठक हैं |
||||||
आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
ब्राह्मी की कुछ विशिष्ट औषधियों यथा-तुलसी, आँवला, अर्क गुलाब, गुड़हल, शंखपुष्पी आदि की भावना देकर कल्क बनाने से विशिष्ट लाभ मिलता है। एक माह तक ब्राह्मी का निरन्तर सेवन आयु, बल को बढ़ाता ही है, वर्ण को सुन्दर, वाणी को मुधर तथा बुद्धि को तीव्र करता है। कायाकल्प के लिए मात्रा को कम या बढ़ा कर वर्ष भर अनुपान भेद से व्यक्ति के लिए सेवन का शास्त्रों में विधान है। अपनी कल्प साधना पद्धति में ब्राह्मी का कल्क अभिमंत्रित पुष्पों के रस की भावना के साथ साधकों को प्रातः वन्दनीया - माताजी द्वारा दिया जाता है। सरस्वती पंचक की इस महत्वपूर्ण औषधि की आध्यात्मिक सामर्थ्य के विषय में जितना लिखा जाय, कम है।
शंखपुष्पी को मेधावर्धक, हृदय अवसादक, तनाव शामक माना जाता है। साधना विधि में इसके प्रयोग से एकाग्रता सम्पादन में विशेष लाभ मिलता है। इसके पंचांग का कल्क बनाकर दूध में मिलाकर प्रातः पुष्प रस के साथ देते हैंं। दीर्घायुष्य, आसन सिद्धि, प्रखरता सम्वर्धन तथा जीवन रसों के उत्सर्जन द्वारा प्रसुप्त शक्तियों के जागरण की फलश्रुतियों का शंखपुष्पी कल्क के साथ सम्बन्ध जोड़ा जाता है। यह त्रिदोष शामक, मानसिक बल बढ़ाने वाली एक विशिष्ट औषधि है। साधकों की मनःस्थिति का विस्तृत विश्लेषण कर इसके योग्य पाने पर उन्हें प्रातः शंखपुष्पी कल्क दिये जाने का विधान बनाया जाता है।
अश्वगंधा, वात शामक वल्य रसायन है। नीरोग स्थिति के साधकों के लिए यह प्रकृति का अनुदान स्वरूप पष्टिवर्धक टोनिक है। जिन साधकों ने संयम द्वारा अपने विकारों का शमन कर लिया है उनके अन्तःबल को उछालने में अश्वगंधा विशेष रूप से सहायक होती है। शतावर भी वल्य रसायन है जिसे सरस्वती पंचक गुणों में गिना जाता है। यह भी पुष्टिवर्धक, जीवनी शक्ति बढ़ाने वाली औषधि है। ये दोनों सीधे अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर प्रभाव डालते हैंं। इस प्रकार ये चक्र उपत्यिकाओं पर प्रभाव डालकर उनमें निहित गुह्य सामर्थ्य को जगाती व आत्मिक प्रगति के सोपानों पर ऊँचा चढ़ाती हैं।
आँवले (धात्रीफल) के प्रयोगों से कायाकल्प सम्बन्धी ग्रन्थों में पृष्ठ भरे पड़े हैं। आँवले को ताजा अथवा चूर्णरूप में दोनों ही प्रकार से लिया जा सकता है। आँवले का रस शहद में मिलाकर अथवा चटनी के अवलेह के रूप में भी लिया जाता है। आँवला खट्टा होने से खटास पैदा कर सकता है। दाँत कसैले हो जाते हैंं व उनमें चीस पैदा होने लगती है। किसी को वायुशूल भी होने लगता है। ऐसे में मात्रा कम करके हल्का सा विरेचक द्रव्य तथा धारोष्ण दूध ले लेना हितकारी होता है। आँवले के विषय में कहा जाता है कि यदि सिद्ध किया आँवला नित्य रत्तीभर मात्र भी मनुष्य ग्रहण करता है और सारे नियमों का पालन करते हुए सात्विक चिंतन में लीन बना रहता है तो उसकी काया का रूपान्तरण होने लगता है। सिद्ध किया रस सूक्ष्म से सूक्ष्म स्नायुओं में बिना किसी प्रतिबन्ध के प्रविष्ट हो विजातीय मल-द्रव्यों को निकाल बाहर करता है। सारे शरीर में समत्व स्थापित कर नवीन निर्माण में इस रसायन की प्रधान भूमिका है। कहा जाता है कि वैखानस, बाल खिल्य एवं च्यवन ऋषिगण ने इसी रसायन से दीर्घायुष्य प्राप्त की।
आँवले को पिप्पली, बिडंग, अमृता, हरीतकी, विभीतक आदि के साथ अलग-अलग विभिन्न योगों में लेने का भी कायाकल्प योग में विधान है परन्तु औषधि एकाकी औषधि ताजे कल्क के रूप में ही लाभ पहुँचाती है। कल्प साधना विधि में निर्धारणानुसार साधकों को प्रातः ५० ग्राम के लगभग अभिमंत्रित आँवला कल्क पुष्परसों की भावना देकर शहद आदि स्निग्ध द्रव्यों के साथ दिया जाता है। एक माह की अवधि में निश्चित ही अनेकों को इससे लाभ मिलता है।
गिलोय, विधारा, वासा एवं बिल्व भी इसी प्रकार व्यक्ति विशेष की मनःस्थिति के आधार पर निर्धारित किए गये कल्प योग हैं। ये सभी औषधियाँ निश्चित परिमाण में नित्य लेने पर वांछित परिणाम दिखाती है। इन्हें आश्रम के परिसर में ही बोया-उगाया गया है। वह सुसंस्कारिता तो इनमें है ही, दिव्यता का समावेश इनकी गुणवत्ता को और बढ़ा देता है।
कल्प साधना के ये सभी उपक्रम एक ही उद्देश्य के लिए है-व्यक्ति के पुराने चले आ रहे ढर्रे को आमूल-चूल बदल देना। इसके लिए जहाँ तप तितिक्षा की दबाव भरी प्रक्रियाएँ अनिवार्य हैं वहीं पर प्रज्ञायोग का साधना उपक्रम तथा औषधि आहार को सात्विक रूप में ग्रहण किया जाना भी। कृत्य के साथ भावना का समावेश कितना अनिवार्य है यह यहाँ आकर एक माह को कुटीवास करने वाला साधक ही समझ सकता है।
|
|||||








