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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
भौतिक क्षेत्र के प्रत्येक कार्य की प्रतिक्रिया हाथो-हाथ दृष्टिगोचर होती है। धूप में बैठते ही शरीर गरम होने लगता है और स्नान करने पर ठण्डक प्रतीत होती है। श्रम करने पर थकान और विश्राम के बाद ताजगी का अनुभव होता है। भूख लगने पर बेचैनी और पेट भरने पर तृप्ति का अनुभव किया जा सकता है। लोग इसी प्रकार का प्रमाण चाहते हैंं कि आत्मिक प्रयत्नों एवं परिवर्तनों का भी क्या कोई प्रभाव उत्पन्न होता है। इस संदर्भ में एक बड़ी कठिनाई यह है कि अपनी आंतरिक स्थिति का सही अनुभव स्वयं तक को नहीं हो पाता। मान्यताएँ ही सिर पर चढ़ी रहती हैं और उन्हीं का भला-बुरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता रहता है। चेतना क्षेत्र की वस्तुस्थिति का सही मूल्यांकन कर सकना अति कठिन है। फिर जब अपने स्वयं के बारे में भी स्थिति की यथार्थता का अनुभव नहीं हो पाता तो दूसरे के सम्बन्ध में कुछ सही निष्कर्ष कैसे निकले? मूर्धन्य तत्वदर्शियों के अतिरिक्त गहराई में उत्तर कर कौन समझे और कौन समझाये? ऐसी दशा में आत्मिक प्रयोगों की परिणति का स्वरूप समझना एक अत्यन्त जटिल प्रक्रिया है। इतने पर भी यह कठिनाई बनी ही रहेगी कि आत्मिक प्रयत्नों की प्रतिक्रिया को उपयोगी-उत्साहवर्धक न माना गया तो फिर सर्वसाधारण के लिए विशेषतया बुद्धिजीवी वर्ग के लिए यह अति कठिन होगा कि वे परिपूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ उस क्षेत्र में आगे बढ़ें। अन्यमनस्क प्रयत्न भी सांसारिक क्षेत्र में तो कुछ न कुछ परिणाम उत्पन्न करते हैंं, पर अध्यात्म क्षेत्र में तो ऐसे निष्प्राण प्रयास प्रायः निराशाजनक ही रहते हैंं।
इस असमंजस को दूर करने के लिए कल्प साधकों के लिए ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में एक विशेष कक्ष की स्थापना की गई है जिससे साधकों की आस्था एवं चेष्टा की गम्भीरता तथा उसकी प्रतिक्रिया को वैज्ञानिक यंत्र उपकरणों के सहारे परखा जा सके। किस प्रयोग का शरीर एवं मन के किस क्षेत्र पर कितना, किस स्तर का प्रभाव पड़ा-इसका विवरण प्रस्तुत कर सकने वाले बहुमूल्य वैज्ञानिक यंत्र उपकरणों की यहाँ व्यवस्था है जिनकी साक्षी से यह जाना जा सकता है कि साधनारत व्यक्ति अपने प्रयत्न का समुचित प्रतिफल प्राप्त कर रहे हैं या नहीं।
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