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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
इस आवश्यकता की व्यवस्था न केवल आस्था के क्षेत्र के प्रयत्नों की परिणति जानने के लिए करनी पड़ी है, वरन् इसलिए भी की गई है कि साधक के शारीरिक, मानसिक एवं अन्तःकरण का स्तर जाँचा जा सके और उनमें जहाँ जो त्रुटियाँ-विकृतियाँ दृष्टिगोचर हों, उनके निराकरण का उपाय बताना, तदनुरूप वैयक्तिक साधना क्रम निर्धारित कर सकना सम्भव हो सके। यदि एक प्रयोग सफल नहीं होता या मन्द प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है तो उसका स्थानापन्न दूसरा निर्धारण किया जा सके, अन्य कदम उठाया जा सके।
प्रगति क्रम किस गति से चला इसकी सही जानकारी अनुमान के आधार पर नहीं लग सकती। व्यक्ति उत्साहित, आशान्वित, विश्वासयुक्त हो तो थोड़ी प्रगति भी बड़ी लगेगी और यदि वह निराशाग्रस्त, दीन, दुःखी प्रकृति का हो तो बड़ी सफलता भी अकिंचन लगेगी या उसका पता ही
न चलेगा। इस कठिनाई का हल वे वैज्ञानिक उपकरण ही कर सकते हैंं जो न केवल साधक की मनःस्थिति-परिस्थिति बताते हैंं, वरन् प्रयोगों की प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हैंं।
ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के सम्बन्ध में प्रज्ञा परिवार के सभी परिजनों को सामान्य जानकारी है। उसे अध्यात्म तथ्यों को विज्ञान की कसौटी पर परखने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। अभीष्ट प्रयोजनों के लिए उसमें ऐसे बहुमूल्य यंत्र उपकरण लगाये गये हैं जिससे मनुष्य की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष परिस्थितियों की जानकारी हो सके। साथ ही किसी प्रयत्न प्रयोग के आधार पर उत्पन्न होते रहने वाले उतार चढ़ावों का लेखा-जोखा सही रूप में प्रस्तुत कर सकना सम्भव हो सके। सम्बद्ध विषयों में स्नातकोत्तर विशेषज्ञ इन यंत्रों का प्रयोग करके यह पता चलाते हैंं कि साधना से सिद्धि की दिशा में बढ़ने-बढ़ाने की प्रक्रिया किस सीमा तक किस गति से सफल या असफल रह रही है। इस व्यवस्था से साधकों को जहाँ साधना क्रम में आवश्यक हेर-फेर करने की सुविधा रहेगी. वहीं सफलताओं का प्रत्यक्ष परिचय मिलने से अनास्था की मनोभूमि भी विश्वासी बन सकेगी। इस आधार पर अधिक श्रद्धा उत्पन्न करना और उस आधार अधिक पर सफलता प्राप्त कर सकना भी सम्भव हो सकेगा।
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