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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


जैसा कि कहा जा चुका है शरीर व मन में घट रही चेतन प्रतिक्रियाओं एवं आंतरिक स्थिति में साधनावधि में प्रकट होते रहने वाले उतार-चढ़ावों का मूल्यांकन न व्यक्ति द्वारा स्वयं सम्भव है न उपकरणों द्वारा। लेकिन इन्हें अवधि विशेषों में माप कर उनका स्थायी रिकार्ड लेकर किसी परिणाम पर पहुँचना विज्ञान की सहायता से पूर्णतः सम्भव है। कुछ ऐसी स्थितियाँ भी विनिर्मित होती हैं जहाँ दावे के साथ कहा जा सकता है कि घटित होने वाली प्रतिक्रिया साधना विशेष की फलश्रुति है। कल्प साधना आरम्भ की जाने के पूर्व उपकरणों के माध्यम से साधक की शारीरिक व मानसिक स्थिति का विश्लेषण तथा साधना की अवधि में समय-समय पर उस प्रगति का पुनः विश्लेषण-यही प्रक्रिया दर्शा सकती है कि प्रायश्चित प्रक्रिया, कल्प साधना व उसके कठोर नियमोपनियमों के पालन से क्या बदलाव आया? इस आधार पर मार्गदर्शक द्वारा आगे समय-समय पर परिवर्तन सुझाये जाते हैंं जो प्रायश्चित से लेकर औषधि कल्प, आहार कल्प, साधना क्रम किसी भी रूप में हो सकते हैंं।

ब्रह्मवर्चस की शोध में शारीरिक व मानसिक स्थिति का विश्लेषण . मापन करने वाले ऐसे उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जो सक्ष्मतम .. परिवर्तनों को बता सकें। एक माह की अवधि कोई इतनी विशेष नहीं है कि कोई बहुत बड़ा परिवर्तन शरीर में हो जाय। यह तो हठीले कुसंस्कारों से मुक्ति पाने वाले मनोबल को और भी शक्तिशाली बनाकर उसके द्वारा चिंतन व व्यवहार पर नियंत्रण करने का अभ्यास है। जो जितने अधिक समय तक कठोरता के साथ नियमों को जीवन में उतारता है, उन्हें अपनी भावी जीवन की रीति-नीति बनाता है, उसके अन्दर उतने ही अधिक प्रभावशाली परिवर्तन देखने में आते हैंं।

अस्पतालों में की जाने वाली रोगों की परीक्षण प्रक्रिया की ही तरह उसमें भी बाह्य परीक्षण की व्यवस्था है। अपने शरीर के विभिन्न पैरासीटर्स की नाप, तौल भार, सीने का फैलाव, नाड़ी की गति, श्वास की गति, तापमान, हृदय, फेंफड़ों, लीवर, पेट की आँतों तथा स्नायु संस्थान की विभिन्न हलचलों का शारीरिक परीक्षण इसी में आता है, जिसे फिजीकल एग्जामिनेशन (Physical Examination) कहते हैंं। इसी के साथ जुड़ा है मनः विश्लेषण एवं विभिन्न यंत्रों द्वारा अचेतन व चेतन मन की विभिन्न गतिविधयों का परीक्षण। इसमें मनोवैज्ञानिक यंत्रों से सुसज्जित प्रयोगशाला में साधक की विभिन्न आदतों, प्रवृत्ति, भावी रीति-नीति एवं व्यक्तित्व का सप्टीट्युड एडाप्शन, रिएक्शन, टाइम इल्युजन्स, परसेप्शन आदि प्रयोग तथा प्रश्नावली के माध्यम से विश्लेषण कर साधना आरम्भ करने के पूर्व की मनःस्थिति का निर्धारण कर लिया जाता है। कल्पकाल की तपश्चर्या अचेतन के परिष्कार से जुड़ी हुई है। अचेतन को यंत्रों द्वारा न तो मापा जा सकता है, न ही देखा जा सकता है। इसकी प्रतिक्रियाएँ जरूर देखी जा सकती है। मानसिक ग्रन्थियाँ, मन में चल रहे ऊहापोह तथा परम्परागत निर्धारण अन्दर की प्रतिक्रियाओं को एवं अन्तःस्थिति को उजागर करने वाले प्रश्न जिस स्वरूप को दशति है, उनका वैज्ञानिक रीति से विश्लेषण कर अचेतन मन की प्रारम्भिक स्थिति का स्वरूप बना लिया जाता है। इसके बाद मध्यावधि तथा अन्त में किये जाने वाले मापन, प्रायश्चित प्रक्रिया तथा तपश्चर्या के उतार-चढ़ाव आरम्भ होने के बाद से निश्चित ही अलग प्रकार के व साधना से परिष्कार के निर्णायक होते हैंं।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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