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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


इस सब प्रयोगों के बाद पैथालॉजी परीक्षण क्रम आरम्भ होता है। एक में घुले विभिन्न रस ट्रव्य, रक्तकोष अलग-अलग यंत्रों से अपनी स्थिति का आभास देते रहते हैंं। लाल कणों की मात्रा अनुपात, उनका परस्पर एक दूसरे से अलगाव-विलगाव, लोह तत्व की मात्रा, सफेद कणों की मात्रा व भिन्नता का प्रारम्भ में हिमोग्लोवीन टी. आर. बी. सी., टी. डी. एल. सी. तथा इ. एस. आर. प्लेटलेट्स के मापन द्वारा विश्लेषण कर लेते हैंं। जीवनी शक्ति को नापने के लिए प्रारम्भिक परीक्षण जरूरी है। हिमेटॉलाजी कक्ष में इन प्रयोगों के उपरान्त बायोकेमिस्ट्री कक्ष में असामान्य अवस्था वाले साधकों के लिए गये अल्प रक्त का आधुनिकतम तकनीकी से युक्त उपकरणों द्वारा पी. एच. (रक्तकी अम्लता का मापन), रक्त की गैसें (ऑक्सीजन व कार्बनडाइ ऑक्साइड), रक्त में शकर, यूरिया, क्रिएटिनीन तथा अन्य एन्जाइम्स का मापन किया जाता है। सहायक के रूप में अन्य कई उपकरणों की मदद लेकर इन मापनों से यह अनुमान लगाया जाता है कि बाहर से स्वस्थ दृश्यमान साधक की आन्तरिक स्थिति क्या है? एन्जाइम्स द्वारा होने वाले रस मावों एवं चयापचयिक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप नित्य विकार शोधन तथा मल संचय की प्रक्रिया कालान्तर में क्या परिणाम उत्पन्न कर सकती है तथा इस निदान के उपरान्त चिकित्सा का निर्धारण किस प्रकार किया जाय? यह परीक्षण इस दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे संचित विकारों से निवृत्ति मिलती चली जाती है, रक्त में शुद्ध ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती व निस्सृत होने वाली कार्बनडाय ऑक्साइड गैस की मात्रा घटती चली जाती है, रक्त गैस विश्लेषक यंत्र इस परीक्षण में सहायता करता है।

सूक्ष्म रसमावों, हारमोन्स का 'रेडियोइम्यूनोएसे' तकनीक द्वारा विश्लेषण इस साधना परीक्षण की विशेषता है। ग्रन्थियों के खुलने, शरीर के पश्चर्या की भट्टी में गलने से तनाव उत्पन्न करने वाले हारमोन्स की रक्त में कमी तथा चक्रवेधन साधना द्वारा सूक्ष्म उपत्यिकाओं से इन न्यूरो-ह्यूमरल मावों का रक्त में बढ़ना साधना की प्रतिक्रिया की विभिन्न ऊर्ध्वगामी स्थितियाँ हैं।

कल्पकाल में विशिष्ट साधनाओं, नित्ययज्ञ एवं औषधि कल्क सेवन के फलस्वरूप प्राणशक्ति कितनी बढ़ी, फेंफड़ों की रक्तशोधन क्षमता में "अभिवृद्धि किस गति क्रम से हुई, इसके लिए स्पायरोग्राम की सहायता ली जाती है। प्राणायाम प्रक्रिया से फेंफड़ों के आयतन में वृद्धि तथा 'लंगफक्शन्स' में परिवर्तन प्रत्यक्षतः ग्राफ में रिकार्ड होता चला जाता है। शारीरिक विद्युत ओजस, तेजावलय एवं ब्रह्मवर्चस के रूप में दृष्टिगोचर होती है। इन्हें मात्र देखा व इनका मूल्यांकन किया जा सकता है, यंत्र द्वारा मापा नहीं जा सकता। फिर यह विद्युत कुछ स्थान विशेषों पर केन्द्रीभूत होती है जहाँ उसका इलेक्ट्रोडों द्वारा ग्राफिक अंकन कर यह बताया जा सकता है कि बिखराव को समेट लेने से कायिक विद्युत में क्या परिवर्तन आते हैंं। मल्टीचैनेल पॉलीग्राफ की सहायता से विशेषज्ञगण मस्तिष्कीय विद्युत (इलेक्ट्रो एनसेफेलोग्राफ), हृदय की विद्युत (इलेक्ट्रो मार्डियोग्राफ), स्कीन रेजीस्टेन्स, बॉडी के पेसीटेन्स, फोनोकार्डियो, प्लेथिस्मोग्राफी, नर्वक-उक्शन इत्यादि अनेक प्रकार के मापन करते हैंं जो साधना की प्रगति की दिशा बताते हैंं। ध्यान प्रक्रिया से, जप-साधना से, मंत्र योग से. आहार कल्प से एवं निर्धारित औषधि लेने से क्या-क्या परिवर्तन ई. ई. जी. तथा अन्य आकलनों में आये, भिन्न-भिन्न समय पर इसका विश्लेषण कर अध्यात्म उपचारों की वैज्ञानिकता प्रामाणिकता की जाती है। हृदय का साधना मंम अपना विशिष्ट स्थान है। अंगुष्ठ मात्र कारण शरीर का स्थल माना जाने वाला, अनाहत चक्र के समीपस्थ, पेसमेकर के माध्यम से सारी शरीर प्रक्रियाओं को चलाने वाला यह केन्द्र कल्प साधना से विशिष्ट रूप से किस प्रकार प्रभावित हुआ? पूर्व में कुछ शारीरिक व्यापारों के बाद तथा कल्प चिकित्सा के उपरान्त ई. सी. जी. में क्या परिवर्तन आया, इसका रिकॉर्ड कॉडियालाजी कक्ष में लिया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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