आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
साबुन लगाना भावी जीवन की रीति-नीति निर्धारण करना है। प्रायश्चित की सार्थकता तभी है जब पिछली गतिविधियों को बदलकर श्रेष्ठता के पथ पर चलने का निश्चय हो। यह निश्चय ही साबुन है। स्थूल साबुन ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जिसे इस योग्य समझा जाय, जिसके सामने पाप प्रकट किए जायें और जिनके परामर्श से प्रायश्चित विधान का निश्चय किया जाय।
लकड़ी से पिटाई, पानी में धुलाई प्रायश्चित की तपश्चर्या है जिसे पिछली भूलों के दण्डस्वरूप स्वेच्छापूर्वक किया जाता है। शरीरिक और मानसिक सुविधाओं से कुछ समय के लिए अपने को वंचित कर देना, यही तप कहलाता है। किस कर्म के लिए, किस स्थिति के व्यक्ति को क्या तपश्चर्या करनी चाहिए, यह विषय बहुत ही सूक्ष्म है। इसका निर्णय किसी तत्वज्ञानी से ही कराना चाहिए। भिन्न-भिन्न स्थिति के व्यक्तियों के लिए ही दुष्कर्म की गरिमा भारी हल्की होती है, दण्ड के लिए भी शारीरिक मानसिक स्थिति का ध्यान रखना पड़ता है। यह निर्णय स्वयं नहीं करना चाहिए वरन् किसी तत्वज्ञानी से ही कराना चाहिए।
कलफ करना, इस्त्री करना यह है कि जो क्षति समाज को पहुँचायी है उसकी पूर्ति के लिए दान, त्याग जैसा कार्य या अपनी जैसी स्थिति हो उसके अनुसार पुण्य परमार्थ के कार्य किये जायें। इससे उस ऋण से मुक्ति मिलती है जो अनीति द्वारा अपहरण करके अपने सिर पर एकत्रित किया था, जो कभी न कभी ब्याज समेत चुकाना ही पड़ता है। अच्छा यही है कि उसे ईमानदारी और स्वेच्छापूर्वक इसी जन्म में चुका दिया जाय। कलफ लगाना यही है।
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