आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
भीष्म शरशैया पर पड़े थे। उन्होंने मृत्यु टाल दिया और उसी कष्टकर स्थिति को देर तक सहन करते रहे ताकि अनीति समर्थन के पाप का प्रायश्चित सम्भव हो सके। बाल्मीकि पहले डाकू थे पीछे ईश्वर भक्ति के मार्ग पर चले। इस परिवर्तन बेला में उनने पापों का प्रायश्चित करने के लिए तप साधना को आवश्यक समझा। वर्णन है कि वे अविचल साधना में बैठ गए। उनके शरीर पर दीमक ने घर बना लिया। ब्रह्माजी ने आकर दीमक छुड़ाई और पाप मुक्ति का वरदान दिया। इसी घटना के आधार पर उनका नाम बाल्मीकि पड़ा। बाल्मीकि संस्कृत में दीमक को कहते हैं।
ऐसी ही कथा सुकन्या की है। उसने महर्षि च्यवन के तप संलग्न शरीर पर जमी हुई मिट्टी को मात्र टीला समझा और उसमें चमकती आँखों को कोई अद्भुत वस्तु समझने के कारण आँख वाले छेदों में लकड़ी डाली तो आँखें फूट गयीं और रक्त बहने लगा। सुकन्या को जब इस अनर्थ का पता लगा कि उसकी भूल से कितनी बड़ी दुर्घटना हो गयी, इसका अनुमान लगाया तो निश्चय किया कि वह ऋषि की सेवा आजीवन करेगी और अपनी आँखों का ही नहीं, पूरे शरीर का लाभ उन्हें देगी। आग्रहपूर्वक सुकन्या च्यवन ऋषि की पत्नी बनी और उसके इस प्रायश्चित तप से न केवल च्यवन ऋषि को आरोग्य प्राप्त हुआ वरन् सुकन्या का यश भी अमर हो गया।
अंगुलिमाल ने चोरी, डाके से मुख मोड़कर बुद्ध की शरणागति प्राप्त की। साथ ही प्रायश्चित रूप दुष्कृत्यों से कमाया धन धर्म प्रचार के लिए समर्पित कर दिया। आम्रपाली भी इसी राह पर चली, भक्ति मार्ग पर चलने के निश्चय के साथ ही उसने न केवल वेश्यावृत्ति छोड़ी वरन उस आधार पर कमाई हुई विपुल सम्पदा भी बौद्ध बिहारों के लिए दान कर दी। ऐसा ही प्रसंग पिंगला वेश्या का है। उसने भी भक्तिमार्ग अपनाने के साथ-साथ जीवन परिवर्तन की वास्तविकता सिद्ध करने के रूप में प्रायश्चित किया था और अपना उपार्जन सत्कर्म में लगाया था। सम्राट अशोक ने भी यही किया था। उन्हें चण्ड कहा जाता था। चण्ड अर्थात् क्रोधी। जब मुड़े, बदले तो उन्होंने साधु की तरह निर्वाह रीति अपनाई और अपनी समस्त राज्य सम्पदा बौद्ध धर्म के प्रचार कार्य में लगा दी। कुमारिल भट्ट ने प्रायश्चित स्वरूप ही अपने शरीर को अग्नि धूम्र में नष्ट किया था।
इतने कठोर प्रायश्चित तो इन दिनों नहीं बन सकते। फिर बने भी तो आत्म त्रास की वैसी उपयोगिता अब नहीं मानी जाती जैसी कि पूर्वकाल में मानी जाती थी। कल्प साधना में जहाँ पापों के प्रायश्चित की प्रखरता है, वहाँ आरोग्य लाभ, स्वास्थ्य-सन्तुलन, दृष्टिकोण का परिवर्तन, भविष्य निर्धारण एवं आत्मिक प्रगति का पथ प्रशस्त होने जैसे अनेक अतिरिक्त लाभ भी है। इसलिए उच्चस्तरीय साधना मार्ग पर चलने वालों को इस कठोर परन्तु फलदायी साधना के लिए परामर्श दिया जाता है।
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