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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


आज का जमाया हुआ दूध कल दही बनता है, आज का बोया बीज बहुत समय में वृक्ष बनता है, आज का अध्ययन, व्यायाम आज ही कहाँ फल देता है? परिणाम में देर लगने पर बालक निराश हो सकते हैंं, पर विचारशील लोग अपनी निष्ठा विचलित नहीं होने देते और आशा, विश्वास के साथ काम करते रहते हैंं। असंयम बरतने पर उसी दिन शरीर रुग्ण नहीं हो जाता। जिस दिन चोरी की जाय, उसी दिन जेल भुगतनी पड़े ऐसा कहाँ होता है? तो भी समझदारी सुझाती है कि कल नहीं परसों परिणाम मिलकर ही रहेगा। पर लोग भ्रमग्रस्त होकर, कर्मफल के सम्बन्ध में विश्वास छोड़ बैठते हैंं। इसी इन्कारी को वास्तविक नास्तिकता कहना चाहिए।

दुष्कर्मों का प्रतिफल कई रूपों में भुगतना पड़ता है। लोक-निन्दा होती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की आँखों में अप्रामाणिक-अविश्वस्त ठहरते हैं। उन्हें किसी का सघन विश्वास एवं सच्चा सहयोग नहीं मिलता। श्रद्धा और सम्मान तो उसी को मिलता है, जिसकी प्रामाणिकता असंदिग्ध होती है। जन-विश्वास एवं सहयोग के आधार पर कोई व्यक्ति प्रगति करता और सफल होता है। संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्तियों को इस लाभ से वंचित रहना पड़ता है और वे मित्र विहीन एकाकी-नीरस जीवन जीते हैं। घनिष्ठता का लाभ तो उन्हें स्वजनों से भी नहीं मिलता। वे भी सदा आशंका की दृष्टि से देखते हैं और दिखावे का सहयोग दे पाते हैंं। आत्म-प्रताड़ना का दुरूह दुख ऐसे ही लोगों को सहना पड़ता है। दूसरों को झुठलाया जा सकता है, पर अपनी ही आत्मा को कैसे बहकाया जाय? वह दुष्कर्मों से स्वयं खिन्न रहती है। आत्म-धिक्कार से आत्मबल निरन्तर गिरता जाता है।

समाज तिरस्कार, असहयोग, विरोध, उपेक्षा ये प्रत्यक्ष हानियाँ हैं। जिनके ऊपर घृणा और तिरस्कार बरसता है उसकी अन्तरात्मा को पत्थर बरसने से भी अधिक अन्तःपीड़ा सहनी पड़ती है। धन छिन जाना उतनी बड़ी हानि नहीं है जितना कि विश्वास, सम्मान और सहयोग चला जाना। दुष्कर्मों का यह सामाजिक दण्ड हर कुमार्गगामी को भुगतना पड़ता है। पाप और पारा छिपता नहीं। वह फूट-फूटकर देर-सबेर में बाहर निकलता ही है। सत्कर्म छिप सकते हैंं, दुष्कर्म नहीं। हींग की गन्ध कई थैलियों में बन्द करके रखने पर भी फैलती है और दुष्कर्मों की गन्ध हवा में इस तरह उड़ती है कि किसी के छिपाये नहीं छिपती। समाज दण्ड असहयोग-बहिष्कार के रूप में तो बरसता ही है, कई बार वह प्रतिशोध और प्रत्याक्रमण के रूप में भी सामने आता है। लोग अनीति के विरुद्ध उबल पड़ते हैंं तो दुरात्मा का कचूमर ही निकाल कर रख देते हैंं। आये दिन ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं जिनमें अनीति करने वाले को प्रकारान्तर से दण्ड भुगतना ही पड़ा।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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