| आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
 आधियेणाधिभवः क्षीयन्ते व्याधयोऽप्यलम्। 
 शुद्धया पुण्यया साधो क्रियया साधुसेवया।। 
 मनः प्रयाति नैर्मल्यं निक्रषेणेव काञ्चनम्। 
 आनन्दो वर्धते देहे शुद्ध चेतसि राघव॥ 
 सत्वशुद्धया वहन्त्येते क्रमेण प्राणवायवः। 
 जरयन्ति तथान्नानि व्याधिस्तेन विनश्यति।।
 - योग वशिष्ठ 
 
 वशिष्ठ ने कहा-हे राघव। पूर्व संचित दुष्कर्मों के क्षीण हो जाने पर आधि-व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। श्रेष्ठ कार्यों से और सज्जनों की सेवा से मन उसी प्रकार निर्मल हो जाता है, जैसे कसौटी पर कसा गया सुवर्ण। मन के शुद्ध हो जाने पर आनन्द की प्राप्ति होती है। अन्तःकरण की शुद्धि से प्राण सशक्त होते हैंं, जिससे अन्नों का पाचन समुचित रूप से होने लगता है परिणामस्वरूप व्याधियाँ विनष्ट हो जाती है।
 
 ब्रह्महा नरकस्यान्ते पाण्डुः कुष्ठी प्रजायते 
 कुष्ठी गोवधकारी........... 
 बालघाती च पुरुषो मृतवत्सः प्रजायते। 
 गर्भपातनजा रोगा यकृत्प्लीहा जलोदराः।। 
 प्रतिमाभंगकारी च अप्रतिष्ठः प्रजायते। 
 विद्यापस्तकहारी च किल मकः प्रजायते। 
 औषधस्यापहरणे , सूयावर्तः प्रजायते।
 - शातातपस्मृति 
 
 अर्थात् ब्रह्म हत्या करने वाला नरक भोगने के अन्त में श्वेत कुष्ठी, गौहत्यारा गलितकुष्ठी, बालकों की हत्या करने वाला मृत-संतान वाला, गर्भपात कराने वाला यकृत, तिल्ली एवं जलोदर का रोगी, मूर्ति खण्डित करने वाला अप्रतिष्ठित, विद्या और पुस्तकें चुराने वाला गूंगा, औषधियों को चुराने वाला आधाशीशी का रोगी होता है।
 
 'तद् य इह रमणीयचरणा अभ्याशो ह यत्ते रमणीयां योनिमापोरन ब्राह्मणयोनि वा क्षत्रिययोनि वा वैश्योनि वाथ य इह कपूयचरणा अभ्याशो ह यत्ते कपूयां योनिमापोरन्।'
 - छांदोग्य -१०-७ 
 
 'अच्छे आचरण वाले उत्तम योनि प्राप्त करते हैंं और नीच कर्म करने वाले नीच योनियों में जन्मते हैंं।'
 			
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