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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


पूर्वजन्म कृतं पापं नरकस्य परिक्षये।
बाधते व्याधिरूपेण तस्य जप्यादिभिः शमः॥
कुष्ठज्य राजयक्ष्मा च प्रमेहीं ग्रहणी तथा।
मूत्रकृच्छाश्मराकासा अतीसारभगन्दरो॥
दुष्टवणं गण्डमाला पक्षाघातोऽक्षिनाशनम्।
इत्येवमादयो रोगा मापापोद्भवाः स्मृताः।।
- शातातपस्मृति

पूर्व जन्म में किया हुआ पाप नरक के परिक्षय हो जाने पर मनुष्यों को किसी व्याधि के रूप में उत्पन्न होकर सताता है और उसका उपशमन जपादि द्वारा होता है। कुष्ठ, राजयक्ष्मा, प्रमेह, संग्रहणी, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, अतिसार, भगन्दर, दुष्टव्रण, गण्डमाला, पक्षाघात और नेत्रहीनता इत्यादि रोग महापातकों के कारण ही होते हैंं।

पादन्यासकृतंदुःख कण्टकोत्थंप्रयच्छति।
तत्प्रभूततरस्थूलशंकुकीलकसम्भवम् ॥२५॥
दुःखंयच्छतितद्धच्चशिरोरोगादिदुःसहम्।
अपथ्याशनशीतोष्णश्रमतापादिकारकम् ॥२६।।
- मार्कण्डेय पुराण (कर्मफल)

पैर में काँटा लगने पर तो एक ही जगह पीड़ा होती है पर पाप कर्मों के फल से तो शरीर और मन में निरन्तर शूल उत्पन्न होते रहते हैंं।

स्वमलप्रक्षयाघददग्नौ धास्यन्ति धावतः।
तत्र पापक्षयात्पाप नराः कर्मानुरूपतः।।
- शिव पुराण

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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