आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
अवश्यमेव लभते फलं पापस्य कर्मणः।
भर्तः पर्यागते काले कर्त्ता नोस्त यत्र संशयः ॥
(वाल्मी. युद्ध. स. ११)
"पाप कर्म का फल अवश्य ही प्राप्त होता है। हे पते ! समय आने पर कर्ता फल पाता है इसमें संशय नहीं है।"
यदा घरति कल्याणि शुभं वा यदि वाऽशुभम्।
तदेव लभते भदे कर्ता कर्मजमात्मनः।।
अवश्यं लभते कर्ता फलं पापस्य कर्मणः।
घोरं पागते काले द्रुमः पुष्पामिवार्तपम।।
(वाल्मी. अरण्य. स. २९)
हे कल्याणी ! जो कुछ भी शुभ-अशुभ करता है, करने वाला वही अपने किये कर्मों के फल को प्राप्त होता है। करने वाला अपने पाप कर्मों का फल घोर काल आने पर अवश्य प्राप्त करता है। जैसे मौसम आने पर वृक्ष फलों को प्राप्त होते हैंं।
यथा धेनु सहस्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्।
एवं पूर्व कृतं कर्म करिमनुगच्छति।।
अचोद्यमानानि यथा पुष्पाणि च फलानि च।
तत्कालं नाति वर्तन्ते तथा कर्म पुराकृतम्।।
(महा. अनु. अ. ७)
जैसे हजारों गौ में से बछड़ा अपनी माँ को ढूँढ लेता है, ऐसे ही पूर्व किया हुआ कर्म कर्ता को प्राप्त होता है। बिना प्रेरणा के ही जैसे फूल और फल अपने समय का उल्लंघन नहीं करते, वैसे ही पूर्व में किया हुआ कर्म समय का उल्लंघन नहीं करता।
हर साधक के लिए शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है कि वे पहले अपने कुकृत्यों-ज्ञात एवं अविज्ञात से मुक्ति पायें, स्वयं को हल्का करें। तदुपरान्त ही उच्च स्तरीय साधना की बात सोचें। पेट में कब्ज हो तो सभी प्रकार के व्यायाम-आसन, प्राणायाम निरर्थक है। इससे पूर्व मल निष्कासन प्रक्रिया अनिवार्य है। 'कन्फेशन प्रक्रिया की तरह यदि वचन कर लिया जाय तो उससे अन्तरात्मा हल्की होती है। तप, तितिक्षा का मार्ग अपनाकर आंतरिक कल्प की सम्भावनाएँ प्रबल बन जाती है। इस तथ्य के पीछे किसी भी प्रकार की भांति हो तो उसका साधकों को पहले ही निवारण कर मार्गदर्शक से अपना प्रायश्चित विधान पूछ लेना चाहिए।
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