आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
|
237 पाठक हैं |
आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
मनोविज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि शारीरिक रोगों का प्रमुख कारण मनःक्षेत्र में जमे हुए हठीले कुसंस्कार ही होते हैं-हठीले इस अर्थ में कि उन्हें धारण किया हुआ व्यक्ति यह भली-भाँति समझता है कि उसने जो अनुपयुक्तताएँ अपना रखी है, उन्हें छोड़ देना चाहिए। इतने पर भी वे स्वभाव के साथ बुरी तरह गुंथ गई, आदतों के रूप में इस प्रकार परिपक्व बन गई होती है कि उन्हें हटाने के सामान्य उपायों से कोई ठोस परिणाम निकलता दिखाई नहीं पड़ता। समझदारी का तकाजा एक ओर, आदतों का हठीलापन दूसरी ओर। यदि इन दोनों की तुलना की जाय तो कुसंस्कारों का हठीलापन ही भारी पड़ता है।
सभी जानते हैं कि मनुष्य ही है जो मानसिक असंतुलन उत्पन्न करता है और उनके विक्षोभों के फलस्वरूप शरीर के विभिन्न अवयवों की सामान्य कार्य पद्धति में अवरोध उत्पन्न करता है। फलतः बीमारियाँ उसे आ घेरती हैं।
शरीर यात्रा में रक्त संचार का कितना ही महत्व क्यों न हो वस्तुतः उसका नियंत्रण केन्द्र मस्तिष्क में रहता है। हृदय पोषण देता है यह सही है, उसमें प्रोत्साहन एवं नियमन की क्षमता नहीं, यह कार्य मस्तिष्क का है। उसी के ज्ञान तन्तु मेरुदण्ड के माध्यम से समस्त शरीर में फैलते हैं और निर्देश देकर सारे काम कराते हैंं। मस्तिष्क में नींद आने लगे तो अंग-अंग सहज ही शिथिल होते चले जाते हैं। आकुंचन-प्रकुंचन, निमेष-उन्मेष, श्वास-प्रश्वास क्रियायें अचेतन-संस्थान के इशारे पर चलती है। जीवनी शक्ति भोजन से नहीं वरन् मनोगत साहसिकता और प्रसन्नता के आधार पर मिलती और पनपती है। यदि इस केन्द्र में गड़बड़ी चले तो उसका प्रभाव शरीर के विभिन्न अवयवों पर पड़े बिना रह नहीं सकता।
रोगों की जड़ शरीर में हो तो काय चिकित्सा से सहज सुधार होना चाहिए। पोषण की पूर्ति आहार से होनी चाहिए और विषाणुओं को औषधि के आधार पर हटाने में सफलता मिलनी चाहिए। किन्तु देखा जाता है कि जीर्ण रोगियों की काया में रोग बुरी तरह रम जाते हैंं कि उपचारों की पूरी पूरी व्यवस्था करने पर भी हटने का नाम नहीं लेते। एक के बाद दूसरे चिकित्सक के नुस्खे बदलते रहने पर भी रुग्णता से पीछा नहीं छूटता। इलाज के दबाव में बीमारियाँ रूप रंग बदलती रहती है, वा जड़ें न कटने से टूटे हुए वृक्ष फिर से नई कोपलों की तरह उगते हैंं। जड़ों को खुराक मिलती रहे तो टहनियाँ तोड़ने से भी पेड़ सूखता नहीं है।
|