आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
देव दक्षिणा जिसे पूर्णाहुति इष्टापूर्ति का अंग माना जाता है, को इस प्रकार साधक सम्पादित करते रह सकते हैंं-
आत्म निर्माण के दो चरण-
(१) साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा का दिनचर्या में समावेश और निर्वाह।
(२) परिवार में सुसंस्कारिता के प्रचलन। श्रमशीलता, मितव्ययता, सुव्यवस्था, सज्जनता एवं उदार सहकारिता का परिजनों को अभ्यास कराना।
लोक निर्माण के दो प्रयास-
(१) अंशदान अर्थात् आजीविका का एक अंश प्रज्ञा प्रसार के लिए नियमित रूप से निकालना। न्यूनतम दस पैसा नित्य और महीने में एक दिन की कमाई।
(२) समयदान अर्थात् न्यूनतम एक घण्टा नित्य और सामान्यतया इसके अतिरिक्त अवकाश के दिन भी प्रज्ञा अभियान को अपने क्षेत्र में विस्तृत करना तथा रचनात्मक सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए नियोजित करना।
साधना में नियमित गायत्री उपासना न्यूनतम एक माला का जप तथा प्रातःकालीन सूर्य की प्रकाश किरणों के आत्मसत्ता में अवतरण का ध्यान, गुरुवार या रविवार को आधे दिन का उपवास अथवा अस्वाद व्रत। महीने में एक दिन चौबीस आहुतियों का हवन।
स्वाध्याय में नित्य-नियमित रूप से प्रज्ञा साहित्य न्यूनतम आधा घण्टा पढ़ना। युग सृजन के माध्यम से मानवता की सेवा के लिए यथा सम्भव प्रयत्न।
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