आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
व्यभिचारजन्य पापों का प्रायश्चित यही है कि नारी को हेय स्थिति से उबारने के लिए उसे समर्थ और सुयोग्य बनाने के लिए जितना पुरुषार्थ बन पड़े उसे लगाने के लिए सच्चे मन से प्रयत्न किया जाय।
आर्थिक अपराधों का प्रायश्चित यह है कि अनीति उपार्जित धन उसके मालिक को लौटा दिया जाय अथवा सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन के श्रेष्ठ कामों में उसे लगा दिया जाय।
घटनाओं की क्षति पूर्ति अर्थ दण्ड सहने से भी हो सकती है। रेल दुर्घटना आदि होने पर मरने वालों के घर वालों को सरकार अनुदान देती है। उसमें क्षतिपूर्ति के लिए आर्थिक प्रावधान को भी एक उपाय माना गया है। प्रायश्चित विधानों में क्षतिपूर्ति की दृष्टि से दान को महत्व दिया गया है। शास्त्र कहता है।
सर्वस्वदानं विधिः सर्वपापविशोधनम्।
- कूर्म पुराण
अनीति से संग्रह किए हुए धन को दान कर देने पर ही पाप का निवारण होता है।
दत्वैवापहतं द्रव्यं धनिकस्याभ्युपापतः।
प्रायश्चित्तं ततः कुर्यात कलुषस्य पापनुत्तपे।।
- विष्णु स्मृति
जिसका जो पैसा चुराया हो, उसे वापिस करे और उस चोर कर्म का प्रायश्चित करे। वापिसी सम्भव न हो या आवश्यक न हो तो अनीति उपार्जित साधनों का बड़े से बड़ा अंश श्रेष्ठ सत्कर्मों में लगा देना चाहिए।
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