आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
आचार्य वृहस्पति के अनुसार-
उपवासस्तथादानं उभौ अन्योन्याश्रितः।
अर्थात्-प्रायश्चित में उपवास की तरह दान भी आवश्यक है। दोनों एक दूसरे के साथ परस्पर जुड़े हुए है।
प्राज्ञ-प्रतिग्रहं कृत्वा तद्धनं सद्गतिं नयेत यज्ञादा पतितोद्धार पुण्यात न्यायरक्षणेवापीकूप तड़ागेषु ब्रह्मकर्म समत्सृजेत्।
- अरुण स्मृति
अनुचित धन जमा हो तो उसे यज्ञ, पतितोद्धार, पुण्य कर्म, न्याय रक्षार्थ, बावड़ी, कुआँ, तालाब आदि का निर्माण एवं ब्रह्म कर्मों में लगा दें। अनुचित धन की सद्गति इस प्रकार होती है।
तेनोदपानं कर्तव्यं रोपणीयस्तथावटः।
- शातातप
तालाब खुदवा कर बरगद का पेड़ लगा देना चाहिए।
सच्छास्त्रपुस्तकम् दद्यात विप्राय सदक्षिणाम्।
- पाराशर
ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित श्रेष्ठ ग्रन्थ देना चाहिए।
वापीकूपतड़ागादि देवतायतनानि च।
पतितान्युद्धरेयस्तु व्रतपूर्ण समाचरेत।।
- यम
बावड़ी, कुआँ, तालाब, देवमंदिर और जीर्णोद्धार आदि कार्य को व्रतपूर्ण स्थिति में करे।
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