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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


आयुर्वेदीय कल्प चिकित्सा में कई फल शाकों के कल्प का उल्लेख है। खरबूजा, आम, जामुन, पपीता जैसे सस्ते फलों पर ४० दिन रहकर यह कल्प होते हैंं। मँहगे फलों में अनार, मौसमी आदि के रसों पर भी रहा जाता है। सेव, चीकू भी ऐसे ही उपयोगी फलों में है। शाकों में टमाटर, तोरई, लौकी भी उस प्रयोजन के लिए उपयोगी होती है। दुध, छाछ के कल्पों का भी विधान है। कल्प काल में कई औषाधियाँ भी सेवन कराई जाती हैं। पर आध्यात्मिक उद्देश्य के लिए कल्पों में एक महीने की अवधि उपरोक्त फलों, शाकों में से किसी एक का चयन करके उसी पर निर्वाह किया जाय तो इससे शरीर शोधन एवं मानसिक भावनात्मक परिष्कार का भी अतिरिक्त लाभ मिलता है।

तुलसी, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, शतावरी, गिलोय, अश्वगंधा जैसी जड़ी बूटियों का भी कल्प कराया जाता है। उनका रस, क्वाथ-कल्प या अर्क बनाकर पिलाने की प्रक्रिया है। किस-किस औषधि का कल्प कराया जाय, किस रूप में किस मात्रामें उसे दिया जाय यह निर्धारण व्यक्ति विशेष की स्थिति को समझकर उसकी आवश्यकताओं के अनुसार ही किया जा सकता है।

साधारणतया इस रूप में उपरोक्त औषधियों को एक दिन में सौ ग्राम तक दिया जाता है। अर्क पिलाना हो तो उस रूप में लगभग दस आँस तक औषधियों का सार तत्व पेट में पहुँचाया जा सकता है। औषधि कल्प में फलाहार ऐसा चुना जाता है जो इन औषधियों का सजातीय है। कल्प साधना में मनोबल सम्पन्न साधकों के लिए उनकी स्थिति के अनुसार इस प्रकार के अतिरिक्त कल्पों का भी निर्धारण किया जाता है।

कल्प अवधि में साधक नित्य गंगाजी जाते हैंं। अपने पीने के लिए गंगाजल का पात्र स्वयं भरकर लाते हैंं। जब भी पीना हो तो उसी को पीते हैंं। इस प्रकार गंगा और गौ का सान्निध्य रहने के अतिरिक्त एक अध्याय गीता एवं प्रज्ञापुराण का सामूहिक पाठ भी होता है। गायत्री के २४ हजार अनुष्ठानों अथवा सवालाख अनुष्ठान का सम्पुट तो साथ-साथ है ही। इस प्रकार गंगा, गौ, गीता और गायत्री के रूप में प्रख्यात अध्यात्म साधना के चारों चरणों को अपनाते रहकर साधक अपनी पवित्रता, प्रखरता एवं प्रगति का पथ प्रशस्त करते हैंं। कायाकल्प के विषय में पहले ही कहा जा चुका है कि यह मात्र पुराने अभ्यासों के ढर्रे को बदलकर नवीन जीवनक्रम आरम्भ करना है। शरीर शोधन तो अवश्य होता है पर अन्तः में कायाकल्प व शारीरिक बलिष्ठता में बड़ा अन्तर है। अपना भावी जीवन कष्ट साध्य न हो, निरोग, दीर्घायुष्य काया का आनंद प्राप्त हो, साथ ही आत्मिक प्रगति का प्रयोजन सधा रहे उसी का यह पूर्वाभ्यास है। आहार से श्रेष्ठ और कोई माध्यम इसके लिए नहीं हो सकता। च्यवन, ययाति की तरह यौवन प्राप्ति पुनः हो सकी कि नहीं, इसे नहीं बल्कि जीवनी शक्ति सम्वर्धन एवं नवीन जीवन पद्धति के अभ्यास की दिशाधारा मिल जाने को ही एक माह की साधना का अनुदान, वरदान मानना चाहिए। चिन्तन, शरीर क्रिया, व्यवहार तथा अन्तः का परिपूर्ण काया कल्प ही वास्तविक कल्प साधना है। अनगढ़ शरीर व मन इस एक माह में प्राकृतिक जीवन क्रम को आगे भी अपनाने के लिए विवश हो जाय, यही इस आहार साधना का मुख्य उद्देश्य है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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