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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....

आन्तरिक परिष्कार का स्वर्ण-सुयोग


उपवास पूर्वक सवालक्ष गायत्री अनुष्ठान प्रायः लोग अपने घरों पर भी करते रहते हैं। उपवास में आमतौर से आधे पेट से अधिक भोजन नहीं किया जाता। पेटू लोगों की बात अलग है जो उपवास जैसी तपश्चर्या को भी मात्र आहार परिवर्तन भर समझते हैंं और पेट पर अन्य दिनों की अपेक्षा भी अधिक बोझ लादते हैंं। कल्प साधना में आधे पेट भोजन का प्रबन्ध तो हो ही जाता है। ऐसी दशा में चान्द्रायण जैसा स्वरूप नहीं रह जाता जैसा कि शास्त्रकारों ने उसका असाधारण माहात्म्य वर्णन किया है। आहार चिकित्सा की बात हो तो वह भी अन्य प्राकतिक चिकित्सा पद्धतियों की तरह लोग अपने-अपने काम धन्धे के साथ-साथ करते रह सकते हैंं।

जिस विशेषता के कारण देखने में साधारण किन्तु परिणाम में महान इस तपश्चर्या का माहात्म्य बताया गया है वह है-'आत्मिक कायाकल्प', जिसके निमित्त इस सन्दर्भ में अनेकानेक नियम, संयम एवं विधि-विधानों का निर्धारण हुआ है। उपवास और जप तो उस प्रक्रिया के दृश्यमान शारीरिक क्रिया-प्रक्रिया के रूप में सम्पन्न होने वाले उपचार भर हैं।

वस्तुतः इस साधना को अध्यात्म कल्प उपचार समझा जाना चाहिए और उसके साथ प्रयोजनों का महत्व समझा जाना चाहिए जो उसके साथ चिन्तन और भावना के रूप में अविच्छिन्न रूप में जुड़े हुए है। यदि उन पर ध्यान न दिया जाय और केवल शरीरचर्या चलती रहे तो समझना चाहिए कि शास्त्र निर्धारण का एक बहुत छोटा अंश ही पूरा हुआ।

समझा जाना चाहिए कि अध्यात्म तत्वज्ञान भावना एवं विचारणा के क्षेत्र पर प्रयुक्त एवं प्रभावी होता है। वहाँ प्रखरता उत्पन्न हो तो शरीर के क्रिया कलाप अनायास ही उत्कृष्टता युक्त बन जाते हैंं। भक्तियोग में भावना क्षेत्र को श्रद्धा तत्व से परिपूर्ण बनाया जाता है। योग प्रज्ञा की आराधना है। इन दोनों को उच्चस्तरीय भाव सवेदना एवं उदात्त दृष्टिकोण का उन्नयन अभ्युदय कहा जा सकता है। भक्तियोग, ज्ञानयोग के द्वारा अन्तःकरण एवं विचार संस्थान को अधिक परिष्कृत बनाया जा सके तो कर्मयोग अनायास ही निभने लगता है। शरीर तो वाहन उपकरण भर है। उसे अन्त प्रेरणाओं के निर्देशन में काम करना होता है। वह स्वामिभक्त सेवक की तरह सभी भले-बुरे निर्देशनों का पालन करने में सर्वथा तत्पर रहता है।

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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