आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
आत्मिक कायाकल्प के लिए भी शरीर का तप तितिक्षा के आधार पर ही परिशोधन होता है। यह प्राथमिक अनिवार्यता मानी जानी चाहिए। उपवास पर आधारित आहार चिकित्सा को कायिक निरोगता का मूल आधार माना जा सकता है। पेट का भार हल्का रहने और सहकारी न्यूनतम आहार से गुण, कर्म, स्वभाव पर उपयोगी प्रभाव पड़ने का प्रत्यक्ष लाभ स्वास्थ्य सुधार के रूप में दृष्टिगोचर होता है। इसी प्रकार इन्द्रिय संयम, अर्थ-संयम और विचार संयम का अभ्यास करने से अवांछनीय दुष्प्रवृत्तियों से सहज ही छुटकारा मिल जाता है। अन्धकार हटना और प्रकाश बढ़ना एक ही बात है। कुसंस्कार घटेंगे तो आंतरिक प्रखरता स्वयमेव बढ़ेगी। इसके अतिरिक्त उन दिनों आंतरिक परिवर्तन हेतु जो भावनात्मक प्रयत्न होते हैंं और योगाभ्यास सम्मत अतिरिक्त प्रयास भी चलते हैंं, वह अभ्युदय-उत्कर्ष की सशक्त प्रक्रिया है।
अन्न को वस्तुतः ब्रह्म एवं प्राण की उपमा दी गयी है। उपनिषद्कार ने अन्न ब्रह्म की उपासना करने के लिए साधकों को सहमत करने पर अनेकानेक तर्क, तथ्य एवं प्रमाण प्रस्तुत किये है। आमतौर से आहार द्वारा क्षुधानिवृत्ति एवं स्वाद तृप्ति भर की बात सोची जाती है। वास्तव में यह मान्यता सर्वथा अधूरी है। भोजन प्रकारान्तर से जीवन है। उसकी आराधना ठीक प्रकार की जा सके तो शरीर को आरोग्य, मस्तिष्क को ज्ञान-विज्ञान, अन्तःकरण को देवत्व के अनुदान, व्यक्तित्व को प्रतिभा तथा भविष्य को उज्ज्वल सम्भावनाओं से जाज्वल्यमान बनाया जा सकता है।
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