आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....
दूसरा संयम है- अर्थ संयम। दुर्व्यसन, ठाट-बाट, फैशन-श्रृंगार, प्रदर्शन, दर्प में जितना पैसा खर्च होता है इसे रोककर सत्प्रयोजनों में लगाया जा सके तो अपव्ययजन्य दोष-दुर्गुणों से बचने, दरिद्रता घटने तथा उपयोगी कार्यों के लिए कुछ साधन बचने जैसे कितने ही लाभ मिल सकते हैं। 'सादा जीवन-उच्च विचार' का सिद्धांत आध्यात्मिकता का, शालीनता का मेरुदण्ड है। उसका परित्याग करके विलासी, उच्छृखलता अपनाई जाय तो अनायास ही व्यक्तित्व में अनेकानेक दोष-दुर्गुण घुस पड़ेंगे। इस विपत्ति से बचना हो तो अर्थ संयम बरतने में कठोरता अपनानी चाहिए। औसत भारतीय स्तर का निर्वाह पर्याप्त समझा जाना चाहिए। शेष बचत का ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जैसा परमार्थ परक उपयोग हो सकता है।
सन्तान की संख्या बढ़ाना, परिवार को आलसी-अकर्मण्य बनाकर एक व्यक्ति की आजीविका पर निर्भर कर देना भी प्रकारान्तर से अपव्यय बढ़ाना ही है। इन आधारों पर अर्थ संकट खड़ा करने में किसी भी दृष्टि से बुद्धिमानी नहीं है। परिवार छोटे रहें। हर सदस्य मितव्ययी एवं परिश्रमी बने तब उस अर्थ संकट से बचा जा सकता है जिससे आजकल हर व्यक्ति संत्रस्त है।
विवाह शादियों की धूमधाम में अनावश्यक खर्च करने जैसी कुरीतियाँ भी बरबादी का कारण बनी हुई है। उत्तराधिकार में बहुत कुछ छोड़ मरने, जो कमाया उसे सन्तान को ही देने की प्रवृत्ति ऐसी है जिसे प्रचलित होते हुए भी अनैतिक एवं अदूरदर्शितापूर्ण ही कहा जायगा। इन सभी अपव्ययों पर अंकुश लगाया जा सके तो वैयक्तिक एवं पारिवारिक जीवन में अनेकों सत्प्रवृत्तियाँ पनपेंगी। नीतियुक्त उपार्जन और विवेकपूर्ण उपयोग का सिद्धांत यदि व्यावहारिक जीवन में अपनाया जा सके तो समझना चाहिए कि तपश्चर्या का एक अति महत्वपूर्ण सिद्धांत जीवन-क्रम में सम्मिलित हो गया और उसका दूरगामी सत्परिणाम उपलब्ध होना सुनिश्चित है। यह एक श्रेष्ठ सत्परम्परा तो है ही, साथ ही साधनों का सीमित व्यय किये जाने पर उपलब्ध प्रकृति सम्पदा का लाभ उन अभावग्रस्तों को भी मिल जाता है जो सम्पन्नों द्वारा अनावश्यक अपव्यय किये जाने पर उनके हिस्से में आती ही नहीं या फिर दाम ऊँचे चढ़ जाने के कारण वे उन्हें खरीद ही नहीं सकते। सादगी सात्विकता की प्रतीक है। उसमें नम्रता की झलक है जिसे अपनाने पर सहज सज्जनता पनपती है और ईर्ष्या-द्वेष का एक बड़ा कारण कम होता है।
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