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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4194
आईएसबीएन :0000

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आन्तरिक कायाकल्प का सरल विधान....


चौथा संयम है-विचार संयम। विचार अदृश्य होते हैंं। इसलिए आमतौर से उन्हें पदार्थ वैभव नहीं माना जाता और उन्हें उपयोगी प्रयोजनों में ही नियोजित किया जाता है, इसका किसी को ध्यान ही नहीं रहता। समझा जाना चाहिए कि विचार भी समय या धन की तरह एक सामर्थ्य है। उन्हीं के आधार पर कर्म की प्रेरणा मिलती है, साधन जुटते हैंं और उत्थान-पतन का क्रम चलता है। वैज्ञानिक, कलाकार, साहित्यकार, विशेषज्ञ जन्मजात रूप से किन्हीं आंतरिक विशेषताओं से सम्पन्न नहीं होते, मात्र अपने विचारों को अस्त-व्यस्त होने से रोककर उन्हें अभीष्ट प्रयोजनों मंष ही नियोजित किये रहते हैं। फलस्वरूप बिखराव को समेटने का यह कौशल उन्हें निश्चित क्षेत्र में प्रवीण-पारंगत बना देता है।

अध्यात्म क्षेत्र में बहुचर्चित ध्यान-धारणा में विचारों को एकाग्र करके लक्ष्य विशेष पर केन्द्रित करने का अभ्यास करना पड़ता है। यह एक उच्चस्तरीय कला-कौशल है।

किसी विषय में प्रवीण पारंगत होने के लिए उसके साथ अभिरुचि जोड़नी पड़ती है। साथ ही विचारों को आवारागर्दी में भटकने से रोककर उन्हें निर्धारित प्रयोजनों में ही कार्यरत रहने को अभ्यस्त करना होता है। इस प्रसंग में जिसे जितनी सफलता मिलेगी वह उसमें उतनी ही मुर्धन्य स्थिति प्राप्त करता चला जायेगा। महामानवों में से प्रत्येक ने विचारों को अभीष्ट लक्ष्य के साथ तत्परतापूर्वक जोड़े रहने की बुद्धिमत्ता अपनाई और उसी जागरूकता के आधार पर वे प्रगति पथ पर आगे बढ़ते चले गये।

कल्प एक प्रकार की तप साधना है। उसमें निर्धारति अवधि में तो उपरोक्त चारों संयम अपनाने ही होते हैंं, साथ ही यह निश्चय निर्धारण भी करना होता है कि समाप्त होने के उपरान्त भी वे इन्हें जीवनचर्या का अंग बनाकर रखेंगे। जिनने यह निश्चय किया और उसे व्रतपूर्वक निभाया, समझना चाहिए कि उनका भविष्य उज्ज्वल बनने में किसी प्रकार का सदेह शेष नहीं रह गया। व्रत साधना के दिनों में यही चिंतन-मनन करते रहना चाहिए-जीवन का किस प्रकार श्रेष्ठतम सदुपयोग किया जा सकता है और महत्वपूर्ण कृतियाँ साथ लेकर परमेश्वर के दरबार में कैसे गर्वोन्नत मस्तक से जाया जा सकता है?

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    अनुक्रम

  1. अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित राजमार्ग

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