कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
|
2 पाठकों को प्रिय 335 पाठक हैं |
सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
पत्रकार ने ठीक ही पूछा कि इस उत्साह का स्रोत क्या है? जन-जन में यह उत्साह कैसे पैदा हुआ?
उत्तर मिला, “इसका एक मुख्य कारण है निरन्तर प्रचार।" इस प्रचार का उन्होंने एक बहुत ही सूक्ष्म उदाहरण दिया कि बिलकुल छोटे बच्चों में सामूहिक जीवन के प्रति अनुराग उत्पन्न करने के लिए जिस प्रकार की कहानियाँ सुनायी जाती हैं, उसका एक नमूना यह है :
कुछ चिड़ियाँ एक साथ उड़ी जा रही थीं। एक चिड़िया पीछे रह गयी और खो गयी। इसकी मदद के लिए दूसरी चिड़ियें आयीं और उन्होंने उसे परेशानी से बचा लिया।
मेरे भीतर निरन्तर जागते प्रचारक को नयी स्फुरणा मिली, पर मेरे प्रचारक के हाथ-पैर भले ही प्रचारक के हों, उसकी आत्मा विचारक की है। वह भले ही सफलता की चाह करे, खोज तो उसकी सत्य के लिए ही होती है।
प्रचारक के शान्त होते ही विचारक उद्बुद्ध हुआ, ‘स्टेट बैंकवाले हों या फिर विकास प्रेसवाले, उनके मन में यह कामना क्यों उठती है कि उनकी वस्तु का कोई दूसरा उपयोग न करे?'
हरके अपने धन-वैभव पर, अपने मकान पर, सामान पर अपना ही क़ब्ज़ा चाहता है और उसे यह गवारा नहीं कि उन पर कोई दूसरा हाथ रखे, पर अपनी कोई हानि नहीं और दूसरों को लाभ, इस सौदे में भी आदमी क्यों कृपण हो?
प्रश्न का उत्तर तुरत न मिला तो मन उसकी खोज में निकल पडा और जा पहुँचा श्रीरामचन्द्र शर्मा ‘महारथी' के घर। शर्माजी का घर जाने कितने मित्रों की धर्मशाला रही है, पर उस दिन उनके जीने में चढ़ा तो देखा कि उनके शौचालय पर एक ताला लगा है। सोचा घर का द्वार खुला है और शौचालय पर ताला लगा है, यह एक अजीब नक़शा है।
बातों-बातों में बच्चों को टटोला, तो पता चला कि आस-पास के लोग रात-अँधेरे में घुस आते हैं। सोचा कि यह बात बुरी है, पर सोचा कि इसमें बुराई क्या है? शौचालय फ़्लश का है, इसलिए आस-पास के लोग सम्भवतः जिन्हें अपने शौचालय सुलभ नहीं हैं, किसी पड़ोसी के शौचालय का उपयोग कर लें तो क्या यह कोई दुरुपयोग हुआ?
नहीं, यह दुरुपयोग नहीं है और मन में आया कि निश्चय ही यह शर्माजी की अनुदारता है। अनुदारता, संकीर्णता और असद्भावना के वातावरण में मेरा साँस घुटता है, सो घुटता रहा और मुझे यह भी सोचना पड़ा कि भविष्य में मैं यहाँ नहीं ठहरूँगा, पर दूसरे दिन प्रातः सोकर उठा तो मैं ही सबसे पहले उठने वाला था और इस प्रकार मैं ही सबसे पहले शौचालय में गया। ताला उस पर नहीं था, मेरे मित्र ने मेरी वृत्ति जान उसे हटा दिया था, पर किवाड़ खोलते ही मैं सन्न हो गया। शर्माजी सफ़ाई-पसन्द आदमी हैं, स्वयं सफ़ाई करने में विश्वास रखते हैं, इसलिए हमेशा उनका शौचालय भी चन्दन-चौक रहता है, पर आज तो वह पूरा नरक था-उसकी कुण्डी में तो मल भरा ही था, चारों ओर भी गन्दगी के टीबे थे !!
मन में गुस्सा आया, गले में गालियाँ उभरीं और सोचा-इन आदमियों में और कुत्तों में क्या अन्तर है और शर्माजी ताला लगाकर इनसे बचते हैं तो क्या बुरा करते हैं?
नल चलाया, सफ़ाई की, तब कुण्डी पर बैठा और सोचने लगा कि जो शौचालय का उपयोग करे, वह उसकी स्वच्छता में भी अपना हिस्सा दे, यह सुबोध व्यवस्था है, पर आनेवाला अबोध हो और स्वच्छता में भाग न ले तो उसके बाद आनेवाला सुबोध उसके भाग को पूरा करने में झल्लाए क्यों और भविष्य के लिए ताला लगाकर उसका प्रवेश भी क्यों रोके? वह सुबोध है तो अपनी सुबोधता क्यों छोड़े?
|
- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में