लोगों की राय

कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू

बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


यात्री की यह बेफ़िक्री देखकर मुझे लगा कि ड्राइवर की बात झूठी है और बात यह नहीं कुछ और है, पर तभी तमककर ड्राइवर ने कहा, "क़यामत के दिन नहीं, हिसाव तो मैं तुझसे अभी करूँगा बे !"

यात्री ने गुर्राकर कहा, “तो ले, अभी कर" और घूसा मारकर खिड़की का एक शीशा तोड़ दिया। मैंने उसे थपथपाया, “आखिर बात क्या है? और ड्राइवर भाई की बात सही है तो आपको इसके किराये के रुपये अभी देने चाहिए।"

नम्रता से वह बोला, “बड़े भाई, रुपये जब जेब में हैं ही नहीं तो दे दूं क्या इसे?'

तो जब रुपये आपकी जेब में नहीं थे तो आप दिन भर टैक्सी में क्यों घूमते रहे मेरे भाई? मैंने पूछा तो वे तड़ाक से बोले, “अजी, क्या रखा है इन बातों में। भाई साहब, सुबह-सुबह ही दो फ्रेण्ड मिल गयीं और कहने लगीं कि चलो घूमने। महीनों की मनहूसियत के बाद खुशी का यह मौक़ा मिला तो मैं कैसे इनकार कर देता. भला आप ही बताइए कि क्या रखा है इन बातों में !”

उसकी बात सुनकर सच कहूँ आपसे कि मैं मान गया कि कबूतर आँख मीचकर ज़रूर बिल्ली को भूल सकता है और यह दवा ऐसी है कि इसे खाकर आने वाला भय और ख़तरा पास नहीं फटक सकता। सौ ख़तरे हों, लाख भय हों, उन्हें सोचो मत-अजी, क्या रखा है इन बातों में !

तो क्या हमारे रामचरणजी, क्या कबूतरजी और क्या हमारे मालीजी; सबकी बातों में एक बात है कि क्या रखा है इन बातों में यानी क्या रखा है कर्तव्य में और क्या रखा है ज़िम्मेदारी में; छोड़ो उन्हें और जीवन की मौज-बहार लूटो।

सोच रहा हूँ, तो छोड़ दूँ अग्रलेख की चिन्ता और चला जाऊँ सिनेमा भाई रामचरणजी के साथ-आखिर इतनी दूर से आये हैं वे ! अन्तःकरण का उत्तर है-कर्तव्य की निष्ठा और दृढ़ संकल्प ही व्यक्ति को व्यक्तित्व देते हैं और इनमें ढील आयी कि आदमी खोखला हुआ। नहीं, मुझे अपना काम करना है और कहीं नहीं जाना है-लाख बातें हैं, पर क्या रखा है इन बातों में !

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai