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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


तभी एक गोरे ने आकर रिकैट के हाथ में परचा दिया। उसे पढ़ते ही वह चिल्लाया, “तुम लोग भाग जाओ यहाँ से, नहीं तो गोली से भून दिये जाओगे !"

वह मृत्यु के ताण्डव की पहली थाप थी, पर एक भी आदमी वहाँ से नहीं हटा। कैप्टेन रिकैट तमतमा रहा था। फ़ौजी आदेश की टोन में उसने कहा, "गढ़वाली तीन राउण्ड फ़ायर ! (गढ़वाली, तीन-तीन गोली चलाओ)।"

गढ़वाली बहादुरों की राइफ़लें उठीं और निशाने पर आयीं, पर तभी गँजी यह आवाज़-“गढवाली, सीज़ फ़ायर ! (गढवाली, गोली मत चलाओ !)'' यह कैप्टेन रिकैट के बायीं ओर खड़े क्वार्टर मास्टर हवलदार चन्द्रसिंह की आवाज़ थी।

उन सिपाहियों के सामने अब दो हुक्म थे-तीन राउण्ड फ़ायर और सीज़ फ़ायर ! हिंसा और अहिंसा का यह एक ऐतिहासिक अन्तर्द्वन्द्व था। हिंसा पराजित हुई, अहिंसा विजयी। ‘सीज़ फ़ायर' का हुक्म पास हुआ और सिपाहियों ने अपनी-अपनी राइफ़लें ज़मीन पर खड़ी कर दीं। भावना किस ऊँचे धरातल तक जा लगी थी, यह तब दिखाई दिया, जब एक सिपाही ने अपनी पाँच राउण्ड भरी राइफल पठानों को सौंपते हुए दोनों हाथ उठाकर कहा, “लो, अब चाहो तो तुम हमें मार डालो !”

कैप्टेन रिकैट अवाक्-भौचक और आकाश भारत माता की जय, महात्मा गाँधी की जय, गढ़वाली पलटन की जय से भरा-गूंजा; जैसे आज उसमें पहली बार दिन में फूल खिले हों !

जलती आँखों से रिकैट ने हवलदार से पूछा, “यह क्यों?"

गम्भीर कण्ठ से हवलदार ने कहा, “ये लोग तो खाली हाथ खड़े हैं, निहत्थों पर हम गोली कैसे चलाएँ?"

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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