कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
सखी-सहेलियों के ये परामर्श, विष का प्याला, काँटों की सेज और काला नाग सब असफल रहे-मीरा का बढ़ा क़दम फिर पीछे न मुड़ा। मीरा ने अपनी बात अन्त में दो टूक कह दी :
"राणा नै समझावो जावो, मैं तो बात न मानी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सन्ताँ हाथ बिकानी।"
मीरा समाज की मर्यादा के प्रति अथ से इति तक विद्रोही है। न उसे प्रलोभनों से उस मर्यादा में बाँधा जा सका, न लोक-निन्दा के भय से और न मृत्यु एवं दण्ड के आतंक से। वह अपने रास्ते चली और सिर्फ अपने ही रास्ते चली। अपने रास्ते की ऊँचाई और पवित्रता ही उसके सामने रही, लोकापवाद नहीं।
मूर्ख और अन्धा समाज यदि असत्य को सत्य, पाप को पुण्य और काले को गोरा कहे तो क्या हमें झुक जाना चाहिए और उसकी हाँ में हाँ मिलानी चाहिए? मीरा के जीवन की प्रतिध्वनि है-नहीं, एक बार नहीं, हज़ार बार नहीं, लाख बार नहीं; और बस यही मीरा का विद्रोह है !
सीता ने समाज-व्यवस्था की रक्षा के लिए जिस मर्यादा का कठोर पालन किया, मीरा ने सत्य की रक्षा के लिए उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये और दोनों ने मिलकर जैसे संसार से कहा-समाज की मर्यादा संकट सहकर भी पालन करने के योग्य है; जब वह सत्य पर आश्रित हो, शिव पर सन्तुलित हो और सुन्दर की विधायिका हो और समाज की मर्यादा संकट सहकर, प्राण देकर भी भंग करने के योग्य है, जब वह सत्य के विरुद्ध हो, शिव की बाधक हो और सुन्दर की नाशक हो।
स्पष्ट शब्दों में-मर्यादा साधन है साध्य नहीं। वह इसलिए है कि सत्य, शिव, सुन्दर का पथ प्रशस्त करे। वह इसलिए नहीं है कि सत्य, शिव, सुन्दर के पथ में बाधक बनकर खड़ी हो-उसे यह अधिकार नहीं दिया जा सकता, नहीं दिया जा सकता। पहली दशा में वह पोषण है और दूसरी में शोषण और यह तो बालक भी जानते हैं कि पोषण हमारे सिंचन का और शोषण हमारे संहार का ही पात्र है-जहाँ पोषण का शोषण और शोषण का पोषण होता है, वह व्यक्ति हो या समाज फल-फूल नहीं सकता !
सीता और मीरा; हमारे राष्ट्र के दो महान् नारी-चरित्र और हमारी नारी-संस्कृति की महत्त्वपूर्ण इकाई ! इस इकाई के प्रति हमारा शत-शत वन्दन और लक्ष-लक्ष अभिनन्दन !
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में