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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !


चित्रकार मित्र श्री आशाराम शुक्ल के कला-निकेतन से उस दिन नयी दिल्ली रेडियो स्टेशन के लिए चला तो एक मित्र भी साथ हो लिये। डेढ़ रुपये में ताँगा किया, रेडियो स्टे चे तो देखा कि जेब में कोई छोटा नोट ही नहीं।

दस रुपये का नोट ताँगेवाले को दिखाया तो उसने एक अधूरे वाक्य में ही अपनी बात पूरी कर दी, “अजी, सरकार !" साथ आये मित्र का हाथ उनकी जेब को छूनेवाला ही था कि अपना नोट मैंने उन्हें थमाया और भीतर चला गया। थोड़ी देर बाद वे भीतर लौटे तो मेरा नोट उनके हाथ में था। बोले, “नोट तो टूटा नहीं, पर एक बला टल गयी। जाने कहाँ से एक खोटी अठन्नी जेब में आ घुसी थी और महीना हो गया, टलती ही न थी। एक रुपये के नोट में लपेटकर ताँगेवाले को भिड़ा आया।"

मुझे यह बुरा लगा। मैंने उन्हें इसके लिए बुरा-भला कहा तो बोले, “अजी, अब आपकी तरह तो हम भगत हो नहीं सकते। फिर मैं खोटे सिक्के ढालता तो हूँ नहीं, चलती हुई आयी थी, चलती हुई चली गयी !"

कोई एक घण्टा बाद हम रेडियो स्टेशन से बाहर निकले तो देखा कि वही ताँगेवाला खड़ा है। उसने हमें बुलाया और हम बैठ गये। तै करने की भी कोई बात न थी; अभी तो हम उसमें आये ही थे।

मुझे खुशी हुई कि वह मिल गया। ताँगे से उतरकर नोट टूटेगा तो सोचा इसकी खोटी अठन्नी भी बदल दूंगा, पर मेरे मित्र मुझसे अधिक चौकन्ने थे। उन्होंने मेरे उतरने से पहले ही अपने पास से दो रुपये का नोट ताँगेवाले को थमा दिया। उनके पास शायद वही नोट था और किसी दुर्घटना की सम्भावना भी उनके मन में न थी, पर ताँगेवाले ने नोट लेकर जब उनकी ही दी हुई खोटी अठन्नी उनके हाथ दी तो बेचारे झेंपे भी, झिझके भी, पर करते क्या, राह तो कहीं थी ही नहीं। उनकी जेब से चली अठन्नी, चल-फिरकर उनकी जेब में आ पहुँची।

एक बार तो लगा कि मेरे भीतर हँसी उफ़न पड़ेगी, पर तभी जैसे गम्भीरता की गाँठ उलझ-सी गयी। मुझे लगा कि यह खोटी अठन्नी जीवन का एक बड़ा पाठ है, पर वह पाठ क्या है?

नोट तुड़ाकर तीन रुपये मैंने भावना में हाँ और स्वरों में ना कहते, मित्र की जेब में डाले और अपने कमरे में आ लेटा-वह अठन्नी का पाठ क्या है?

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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