कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
चार
ठाकुर चन्दन सिंह की कहानी सुनी तो मुझे याद आ गयी मेरे मित्र की पत्नी ज्ञानदेवी। वह अपनी सहेली के प्रेमी को प्यार करने लगी। कुछ दिन तीनों में पूरा सद्भाव रहा, पर बाद में ज्ञानदेवी के मन में यह दुर्भावना जागी कि उसे ही सर्वाधिकार मिल जाए और उसने उन दोनों के बीच में ज़हर बोने
शुरू किये। वह ज़हर बोती, सींचती, उसमें अंकुर भी आते, पर वे पनप न पाते।
ज्ञानदेवी अपनी असफलता देखती, उफनती, गरजती, धूल उड़ाती और हाय-हाय करती। उसका मीठा बोल, कड़वा हो गया, चेहरा रूखा हो चला और आदत लड़ाकू। वह तेजी के साथ प्रचण्ड होती गयी और एक दिन उस पर गठिया का ऐसा आक्रमण हुआ कि वह लुंज हो पड़ी। वह विदुषी अपने रोग का मनोवैज्ञानिक कारण समझती थी, अपने मन को बदलने के प्रयत्न भी करती थी, पर उसकी प्रचण्डता उसे फिर आ घेरती थी। बहुत दिनों तक वह यों ही झटके खाती रही। पता नहीं फिर उसकी नाव किस किनारे लगी।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में