कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
पहले तो हमें बुरा लगा कि वाह साहब, हमारी तो बन रही है जान पर और इन्हें सूझी है फुलझड़ी छोड़ने की; फिर फ़ौरन ही हम सँभल गये कि ये तो चचा हैं और चचा को न उतरा हुआ चेहरा पसन्द है, न चढ़ा हुआ। वे अकसर कहा करते हैं कि भाई, चेहरा कोई सिगनल नहीं है कि उसे इस तरह ताने रखो कि देखते ही हँसी-खुशी की रेल फ़ौरन थम जाए और न वो कोई गुब्बारा ही है कि हमेशा इस तरह फूला रहे कि मालूम हो पीली हसीन वरों से आपकी मुहब्बत अभी शुरू हुई है। अरे मियाँ, चेहरा है चाँद, चेहरा है गुलाब कि जब देखो खिला रहे, महकता रहे, चमकता रहे।
तो हम पी गये अपना ताव और धीमे से हमने अपना मामला चचा को सुनाकर उनसे पूछा कि अब होगा क्या? हँसकर चचा बोले- “होगा क्या, होगा क्या, होगा क्या ! अरे, होना-हवाना क्या है इसमें, तुम्हारा अफ़सर तुम्हारे जवाब से, तुम्हारी खुशामद से, तुम्हारी सिफ़ारिश से मान गया; तो मामला ज्यों-का-त्यों, नहीं तो 31 तारीख़ को महीने भर की तनख्वाह और गेट आउट का परवाना दोनों एक साथ मिल जाएँगे। फिर चाहे आप आलू-छोले बेचें और चाहे मूंगफली, पूरी आज़ादी है।"
दुखी तो हम पड़े ही थे, चचा की बात से हमें गुस्सा भी आया और तुनककर हमने कहा, “होना-हवाना क्या है, होना-हवाना क्या है, बस इस बकवाद के सिवा आपको कुछ और भी आता है चचा?"
बात हमारी गरम थी, मगर चचा ने और भी नरम होकर कहा, “इस बकवाद की गहराई को समझने के लिए अरस्तू और पतंजलि के खोपड़े की ज़रूरत है, तुम इसे क्या समझोगे मेरे लाड़ले मीण्डक, मगर आज तुम्हें भी मैं इसे न समझा दूँ, तो तुम भी मुझे क्या चचा कहोगे।
लो सुनो, यह होना-हवाना क्या है राधेश्याम कथावाचक के परिवर्तन नाटक की गोल्डन पिल्स है, जो सब बीमारियों का अकेला इलाज़ है और यहाँ तक कि कोई तुम-जैसा लायक़ भतीजा अपने हम-जैसे चचा को बिना पासपोर्ट के ही सातवें आसमान पर भेजना चाहे तो उसके लिए भी यह रामबाण है।
राम के बाण ने रावण को मारकर भारत के इतिहास में एक नया मोड़ पैदा किया था और हमारी इस गोली ने भी भारत को एक नया मोड़ दिया, यह शायद आपको पता नहीं, औरंगजेब अगर ‘होना-हवाना क्या है' की गोली न खाता तो दिल्ली के इतिहास में औरंगज़ेब की सिर्फ इतनी ही चर्चा होती कि समूगढ़ के मैदान से उसका सिर काटकर शाहजहाँ के सामने दरबार में पेश किया गया और उन्होंने हुक्म दिया कि इसे ठोकरों में लुढ़कने के लिए चाँदनी चौक में फेंक दो।"
“यह किस तरह चचा?'' हमने पूछा तो वोले, “हाँ, अब आये हैं राह पर?" और तब कहने लगे, “औरंगजेब दक्खिन की लड़ाइयाँ जीतकर दिल्ली की गद्दी अपने बाप से छीनने चला तो समूगढ़ के मैदान में उसकी टक्कर शाही फौजों से हुई। उधर औरंगज़ेब अपनी तीस हज़ार फ़ौजों के साथ और इधर बड़ा भाई दारा साठ हज़ार शाही फ़ौजों के साथ। कहाँ तीस, कहाँ साठ ! औरंगज़ेव अपने हाथी पर चढ़ा अपनी फ़ौज के बीचोंबीच खड़ा था कि राजपूत उस पर टूट पड़े और उसके हाथी के चारों तरफ़ जो पठान सिपाही थे उनमें भगदड़ पड़ गयी।
दारा ने दूर से यह देखा और यह सोचकर कि बस लड़ाई के फैसले का वक्त आ गया है, अपना हाथी मोरचे की तरफ़ हूल दिया, पर दारा आरामों में पला राजकुमार और औरंगज़ेब लड़ाइयों के मोरचों पर पनपा सिपाही। दारा धूप और प्यास से बेहाल होकर कुछ मिनिटों के लिए एक हलके से साये में ठहरकर आराम करने लगा, पर ठीक इसी मौक़े पर ख़तरे को सामने आया देख औरंगज़ेब के हाथीवान ने पूछा, “अब क्या होगा हुजूर?''
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में