लोगों की राय

कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू

बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


औरंगज़ेब ने कड़ककर कहा, “होना-हवाना क्या है जी ! फ़ौरन हाथी के पैरों में साँकल डाल दो, जिससे यह अंगल-भर भी इधर-उधर न सरक सके !"

हाथीवान ने हुक्म की तामील की और बस इतनी देर में तख्ता उलट गया। भागे हुए पठान सिपाही लौट आये और राजपूत सिपाही घिर गये। फ़तह औरंगजेब के हाथों रही और दारा दिल्ली की तरफ़ भागता नज़र आया।

“कहिए, इसी गोली ने भारत के इतिहास को यह नया मोड़ दिया या नहीं? और आप जब देखते हैं, हमारी इस गोली का मज़ाक उड़ाते हैं और इसे बकवाद बताते हैं। इस गोली का पहला असर यह है कि आदमी के दिल में भरोसा होता है, बेफ़िकरी आती है और कोशिशों के लिए उसके हाथ-पैर खुल जाते हैं।"

लेकिन चचा, एक निराश-नाउम्मीद आदमी भी तो यही सोचता है कि अब होना-हवाना क्या है? हमने बीच में टोककर पूछा तो बोले, “ठीक है निराश आदमी भी यही सोचता है कि अब होना-हवाना क्या है और कोशिशें बन्द कर बैठ जाता है, पर इसमें मेरी गोली का क्या कुसूर कि लोग . उसे गलत इस्तेमाल करें। फिर भी गोली कुछ-न-कुछ अपना काम करती है और ऐसे लोगों को भी तसल्ली से बैठा देती है, उनकी बेचैनी कम कर देती है; वरना वे जाने कब तक तड़पते और स्यापे लेते।"

ज़रा रुककर बोले, “लीजिए, इस बारे में एक ख़ास बात बताऊँ कि मेरी यह बात बेफ़िकरी की एक दवा ही नहीं है, धर्म का सार भी है।"

वाह चचा, वाह, यह एक ही रही, पर यह तो बताइए कि आप-जैसे नास्तिक को यह धर्म-कर्म कब से सूझने लगा? हमारा यह प्रश्न सुना तो चचा बोले, "हम हज़ार नास्तिक हों, हमें धर्म वालों की बस एक यही बात पसन्द है कि उनका पक्का ईमान-विश्वास इस बात में है कि होना-हवाना क्या है?

एहसान नाख़ुदा का उठाये मेरी बला।
कश्ती ख़ुदा पै छोड़ दूं लंगर को तोड़ दूँ।

अरे डूबेगी, डूब जाएगी, पार होगी, हो जाएगी। पार करेगा तो ईश्वर, डुबाएगा तो ईश्वर और वह जो कुछ करता है भला ही करता है-उसकी इच्छा पूरन हो !

सो भैया ! चाहे आप पण्डत गरड़धज की तरह ईश्वरभक्त हों, चाहे चचा की तरह सफाचट्ट, पर ‘होगा क्या, होगा क्या' के चक्कर से निकलिए और धुड़धुड़ी लेकर खड़े हो जाइए; साथ ही पूरी ताक़त से एक बार सोचिए कि भई, ख़ामख़ाँ हम परेशान क्यों हों, आख़िर होना-हवाना क्या है?

और लो सुनो, आपने उस दिन हमें चाय के साथ गरम पकौड़ियाँ खिलायी थीं, उसका एहसान हमारे सिर है, सो आपको बिना फ़ीस लिये एक मशवरा देकर उसे उतार देते हैं, क्योंकि एहसानफ़रामोशी-कृतघ्नता-बहुत बड़ा पाप है !"

चचा की यह बात सुनी तो हम खिसककर उनके पास हो गये कि जाने वे बड़े साहब के बारे में ही कोई काम की बात न कह दें और कहा, हाँ, तो दीजिए फिर मशवरा, पर चचा, रामबाण हो कि बड़ा साहब धम्म से नीचे आ गिरे !

"बड़ा साहव? अरे भाई, वो पाँचफुटा है क्या चीज़, आपका सारा दफ़्तर धड़ाम से नीचे आ गिरे, अगर आप हमारे मशविरे पर कान दें।" चचा ने गम्भीरता से कहा और तब बोले, “आप गीदड़-गुरु के चेले हो जाएँ और उसका गुरुमन्त्र गले में नहीं, दिल में उतार लें। बस, मामला आपों-आप मुट्ठी में आ जाएगा !"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book