कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
जहाँ तक याद है यह ईगुल की बात है। उस वर्ष वहाँ गाँधी सेवा संघ का वार्षिक सम्मेलन था और गाँधीजी भी उसमें पधारे थे। वहाँ उन्होंने जो भाषण दिया, उसका आरम्भ उन्होंने कुछ इस तरह किया-
अभी मैं अपने ठहरने के स्थान से जब यहाँ चला आ रहा था तो मैंने देखा कि एक अध्यापक महोदय कुछ बालकों को तकली चलाना सिखा रहे थे, पर उनका तकली चलाने का तरीक़ा स्वयं ही शुद्ध नहीं था। भूल यह थी कि वे पहले पूरा धागा खींच लेते थे और तब उसे ऐंठते थे। यह बड़ी भारी भूल है।
एक साधक ने पूछा, पूरा धागा खींचकर फिर उसे ऐंठने में क्या भूल है बापू?
जवाब मिला, पूरा धागा खींचने पर किसी काम से बिना उसे ऐंठ दिये कातनेवाले को उठना पड़ जाए तो उस कच्चे सूत के ख़राब होने का तो भय है ही, पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि आपका एक काम अधूरा रह गया।
और बस अपने स्वभाव के अनुसार यहीं गाँधीजी तकली के सूत्र से जीवन के सूत्र में उतर आये और बोले, पता नहीं मनुष्य के पास मृत्यु कब आ पहुँचे, इसलिए उसे इस तरह जीना चाहिए कि जब भी वह संसार से जाए, उसका हरेक काम अपनी जगह पूरा हो और किसी दूसरे को उसका काम पूरा करने में नहीं, उसके काम को आगे बढ़ाने में ही हाथ लगाना पड़े।
ईगुल की यह बातचीत जब-जब मेरे ध्यान में आयी है, मैंने सोचा है-गाँधीजी जीवन की हर बात को कितनी गहराई से सोचते थे और जीवन के हर क्षण को कितनी गम्भीरता से लेते थे।
और जब भी कभी मैं यह सोचता हूँ कि वे जिस दिन स्वयं इस संसार से गये, अपना वह दिन उन्होंने तीन बजकर सत्ताईस मिनिट पर आरम्भ किया था और जवाब के लिए बीच में पड़ी चिट्ठियों का जवाब उन्होंने लिखाया था, तो एक तड़फन मेरे प्राणों में कौंध-कौंध उठती है कि क्या वे जानते थे कि मैं आज जा रहा हूँ और इसीलिए उन्होंने अपने कई अधूरे काम उस दिन पूरे कर दिये थे !!
तो जीवन का यह सूत्र बना कि जो काम करो, पूरा करो-एक को बीच में अधूरा छोड़, दूसरे का आरम्भ और दूसरे को अधूरा छोड़, तीसरे का आरम्भ, यह काम करने का कोई अच्छा तरीक़ा नहीं है।
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