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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


दुनिया में बहुत ही कम लोग हैं, जो नफे-नुक़सान को ठीक-ठीक समझते हैं। यह बेवकूफ़ भी मजदूरी के कुछ रुपये बचाने की चिन्ता में, लाखों का नुक़सान कर बैठा। कभी-कभी तो नफे-नुक़सान का सवाल इतना सूक्ष्म हो उठता है कि उसे समझना ही मुश्किल हो जाता है। बड़े-बड़े पण्डित खो जाते हैं कि नफ़ा क्या है, नुक़सान क्या है?

एक दिन किसी बड़े घर का खानसामा-दो साइकिलें एक ही साथ लिये जा रहा था। अब सूरत यह थी कि वह ज़मीन पर पैदल और एक साइकिल उसके बायें हाथ और एक दायें हाथ। दोनों को लिये वह जा रहा पैदल। अब देखने में उसके पास दो सवारियाँ, पर असल में वह खुद एक सवारी बना हुआ। यानी साइकिलों पर वह नहीं, साइकिलें उस पर सवार। जिनके पास एक साइकिल, वे हवा से बातें करते हुए निकले जा रहे हैं, पर जिसके पास दो सवारियाँ, वह घिसट रहा है ज़मीन पर। हाँ जी, यह घिसटना ही है कि साइकिलों पर हाथ रखे चले जा रहे हैं, जैसे यह भी कोई नृत्य की मुद्रा हो या डांस का पोज़ ! अब अगर यह खानसामा एक साइकिल किसी को दे दे तो क्या? पहली बात तो यह है कि यह सवारी से सवार हो जाए और दूसरी यह कि इसे एक और आदमी भी अपनी बग़ल में हवा से बातें करता नज़र आए। हमेशा के लिए जो एक आदमी सुख-दुःख का साथी बन जाए, वह नफ़े में, पर नहीं यह ज़मीन पर ही रेंगेगा और किसी को देगा नहीं अपनी एक साइकिल !

और फिर इस बेचारे खानसामा की क्या शिकायत ! यह तो किसी दूसरे की साइकिलें लिये जा रहा है। यह एक किसी को दे दे, तो इसकी वह चाँदमारी हो कि तबीयत हरी हो जाए ! हमारा तो सारा समाज ही विषमता का शिकार है। हमारे विद्वानों ने अर्थशास्त्र के नाम पर समाज में कहीं टीबे खड़े कर दिये हैं और कहीं गड्ढे खोद दिये हैं। नफा-नुक़सान भी यह एक अजीब पहेली है !

और क्यों जी, पहेली क्या नहीं है? सारा जीवन पहेली-ही-पहेली है।

प्राचीन भारत के किसी धर्म-जिज्ञासु ने परेशान होकर कहा था, 'श्रुतयो विभिन्नाः स्मृतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् !' वेद अलग हैं, स्मृतियाँ अलग हैं, अरे भाई, कोई भी ऐसा मुनि नहीं, जिसकी बात हरेक के लिए प्रमाण हो और फिर खैर, यह तो धर्म की बात हुई-धर्मस्य त्वरिता गतिः-धर्म की गति सूक्ष्म है, उसे भाँपना आसान नहीं, पर यहाँ तो हरेक आदमी की अपनी ही राय है।

मेरे पड़ोस में स्टेशन से सिविल लाइन को जो सड़क गयी है, उस पर कुछ लम्बे-लम्बे पहाड़ी पेड़ खड़े हैं। उनमें से एक पर उस दिन एक चील बैठी थी। उधर से दो ऐंग्लो इण्डियन लड़के आये और उन्होंने अपनी छोटी बन्दूक़ से उस चील पर वार किया। निशाना ठीक बैठा, छर्रा कलेजे को बींध गया। चील टूटे आम-सी नीचे आ गिरी। बारूद की आग से वह भुनी जा रही थी। उन लड़कों ने उसे देखा और चल दिये। उनसे किसी ने कहा, “अरे, इसे मारा है, तो उठा ले जाओ !”

लड़के बोले, “हम इसे क्या करेंगे?” पूछा गया कि तब तुमने इसे मारा ही क्यों? लड़के मुसकराये, “वाह, हम तो निशाना सीख रहे हैं !" तभी उधर से दो और लड़के आये। एक ने दूसरे से कहा, “आ भाई, इसे हलाल करें।" वे दोनों उसके पास जा बैठे। चाकू निकालकर उन्होंने कुछ मन्त्र-सा पढ़ा और उसके गले में वह उतार दिया। चील हमेशा के लिए सो गयी। लड़कों ने अपना चालू घास में साफ़ किया और चलने लगे। किसी ने उनसे कहा, “अरे, भाई तुमने मारा है तो ले जाओ इसे !"

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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