लोगों की राय

कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू

बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

चार


ये हुए तीन संस्मरण पर तीन होकर भी जैसे एक ही हों, क्योंकि नाम-रूप की भिन्नता में भी बात तो इतनी है कि दो मित्र आपस में दूध-मिश्री-से मिले, एक दिन आ गया गुस्सा और हो गये नीम, बस दोस्ती ख़त्म और बोलचाल बन्द; यानी हो गयी लड़ाई !

हाँ जी; लड़ाई तो हो ही गयी, पर प्रश्न तो यह है कि अक़्ल बड़ी है या भैंस? और सचमुच अक्ल ही बड़ी है तो इस पहले प्रश्न में से यह नया सवाल भी पैदा होगा ही कि यह क्या बात है कि जो आज मिश्री हैं, वे कल नीम हो जाएँ और जो एक-दूसरे से मिले बिना, आज भोजन नहीं पचा पाते, वे कल दूसरे की सूरत देखने से भी बेज़ार हो उठे?

यह गुस्से की काली करामात है और गुस्सा है आदमी की मज़बूरी। बड़े से बड़ा क्रोधी भी नहीं चाहता कि उसे क्रोध आए, पर वह आता है और ऐसा आता है कि आदमी भूत हो जाए !

मान गये कि आदमी को गुस्सा आएगा ही और दो मित्रों में आपसी लड़ाइयाँ भी होती रहेंगी ही, इसलिए यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि गुस्सा क्यों आए, प्रश्न यह है कि गुस्सा जब आ ही जाए, तो हम क्या करें?

इस ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर पहले दो संस्मरणों में है कि यदि दुर्भाग्य से दो मित्रों में से किसी एक को गुस्सा आ ही जाए, तो यह क्यों ज़रूरी हो कि दूसरा भी आपे से बाहर हो? क्या हम किसी को मैले कपड़े पहने देखकर अपने साफ़ कपड़ों पर धूल डालते हैं? किसी लँगड़े या काने को देखकर अपनी टाँग तोड़ लेते या आँख फोड़ लेते हैं?

नहीं, हम ऐसा नहीं करते ! यह ठीक भी है तो फिर अपने मित्र को गुस्सा आ जाने पर हम स्वयं भी आगबबूला होना क्यों ज़रूरी समझते हैं?

जब हमारे मित्र को गुस्सा आता है तो क्या यह कोई अच्छी बात होती है? नहीं, तो फिर हम एक बुरी बात की नक़ल क्यों करें? उन्हें गुस्सा आ गया तो आ गया पर आप यत्न करके, उस मित्र की एक मज़बूरी मानकर चुप रहिए, शान्त रहिए, मधुर रहिए और इस तरह अपने मित्र की मदद कीजिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book