कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
पाँच
“और क्यों जी, जो दूसरे के गुस्से को देखकर या बातचीत में दूसरे के साथ-ही-साथ हमें भी गुस्सा आ जाए तो क्या करें?"
प्रश्न उचित है, आवश्यक है, क्योंकि सोच-विचारकर तो किसी को गुस्सा आता नहीं। कहा नहीं कि यह तो आदमी की एक मज़बूरी है और मज़बूरी पर क़ाबू पाना अभ्यास का, साधना का विषय है, इसलिए गुस्सा हमें भी आ ही जाए तो हम क्या करें? - इस प्रश्न का उत्तर तीसरे संस्मरण में है कि गुस्सा आ गया, लड़ लिए और लड़ लिये कि बस फिर एक के एक हो गये।
गुस्सा आया, लड़ लिये और गुस्सा उतरा कि बस ज्यों के त्यों, यह एक मनुष्य का चित्र है।
गुस्सा आया लड़ लिये और गुस्सा उतरा कि एक-दूसरे को मिटाने में
जुट गये, यह एक भेड़िए की तसवीर है।
गुस्सा आने पर, गुस्से में गाली-गलौज, मार-पीट कर लेने पर भी आदमी आदमी ही रहता है, पर गुस्सा उतर जाने पर भी गुस्से-जैसा ही व्यवहार करने से आदमी भेड़िया हो जाता है और जो दूसरे को गुस्सा आने पर भी खुद शान्त रहे, गुस्सा न करे तो आदमी देवत्व की ओर बढ़ने लगता है। आप आदमी हैं, उन्नति कीजिए, देवता बनिए, पर ऐसा न कर सकें तो कम-से-कम आदमी तो बने रहिए !
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
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- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
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- सीता और मीरा !
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- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
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- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में