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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

छह


और क्यों भाई, हम आपस में लड़ते क्यों हैं? लड़ाई की पृष्ठभूमि है प्रतिद्वन्द्विता और उसका उद्देश्य है दूसरे को, सामने वाले को, प्रतिद्वन्द्वी को हराकर उस पर विजय पाना !

अच्छा, इस विजय की कसौटी क्या है? मैं युद्धशास्त्र की बात नहीं करता, आपसी लड़ाइयों की बात करता हूँ, जो बातों-बातों में छिड़ जाया करती हैं।

लड़ाई मेरी भूल से शुरू हुई या आपकी, वह हो गयी, बज गयी और खूब बजी। दोनों टोनों ने अपने हाथ दिखाये, किसी ने कसर न छोडी, अब प्रश्न यह है कि तुम भी लड़े, मैं भी लड़ा, पर जीता कौन?

क्या वह जीता, जिसने ज़्यादा गालियाँ दी या ज़्यादा हाथ मारे? ना, मैं उसे विजयी मानने से इनकार करता हूँ और कहना चाहता हूँ कि जीता वह, जो गुस्सा उतरने पर, शान्त होने पर, विवेक के जागने पर और यह सोचने पर कि बड़ी बेवकूफ़ी हो गयी, जो गुस्से के चक्कर चढ़-घूमे, न झिझक में पड़ता है, न संकोच में और सीधा उसके घर पहुँचता है, जिससे लड़ाई हुई थी और कड़वाहट को मिठास में बदलकर वातावरण को फिर से सम कर देता है।

अपने मित्रों में कभी अपनी ओर से लड़ाई की हवा न आने दीजिए, आपके किसी मित्र को गुस्सा आ ही घेरे तो स्वयं शान्त रहिए, बात को तरह दीजिए, टाल दीजिए और आपको भी गुस्सा आ ही जाए तो लड़ लीजिए, पर गुस्से के उतरते ही मित्र के पास पहुँचिए और चाय पीकर ही उठिए।

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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