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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


जी, वे घर में नहीं हैं !

यह भी अच्छा बहाना है, जी हाँ यह भी अच्छा बहाना है, पर अच्छा-बुरा तो बाद में देखा जाएगा, पहले यह तो बताइए कि यह बहाना क्या चीज़ है?

अरे, आप यह भी नहीं जानते कि बहाना क्या चीज़ है। इसे तो छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं। आप भी कमाल के सवाल पूछते हैं भाई साहब ! मेरा छोटा पुत्र अभी छह साल का है। उस दिन वह मेरी जेब में हाथ डाल रहा था कि अचानक बाहर से मैं आ गया। मुझे देखते ही बोला, पिताजी, देखिए आपकी जेब फट रही है, इसमें पैसे न डालिएगा, नहीं तो निकल पड़ेंगे। मैं अवाक् उस छोटे से बच्चे की तरफ़ देखता रह गया कि क्या बहाने की पट्टी पढ़ायी है बेटे ने मुझे। अब चपत मारना तो दूर, घुड़की देने का भी तन्त बिगड़ गया और मुझे कहना पड़ा कि बेटा, अपनी माँ से कहना कि इसकी मरम्मत कर दे। बेटाजान उस समय शायद सोच रहे होंगे कि जेब की मरम्मत तो बाद में होगी, इस समय तो हमने तुम्हारी ही मरम्मत कर दी।

यह है बहाना और आप पूछ रहे हैं कि बहाना क्या चीज़ है? और हाँ, आप मुझसे यह सब क्यों पूछ रहे हैं। आप श्रीमती ज्ञानवतीजी के यहाँ तो अकसर जाते रहते हैं। वे इस कला की पूरी पण्डित हैं। आप चाहें, तो वे इस कला पर भाषण दे सकती हैं। याद नहीं, उस दिन हम लोग उनके घर बैठे थे। उनके पति का स्वभाव उदार है और दूसरों को खिला-पिला कर वे खुश होते हैं। उन्होंने धीरे से कहा, सब लोगों के लिए थोड़ी चाय तो बनवाओ।

सुनते ही श्रीमतीजी का दिमाग छादर हो गया और उन्होंने ऐसी कड़वी आँखों से उन्हें घूरा कि जैसे उन्होंने किसी दूसरी के साथ अपनी नयी शादी का ही प्रस्ताव किया हो, पर छोटे मियाँ सो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभान अल्लाह; उनके पति भी पूरे औघड़ निकले और ज़रा ज़ोर से बोले, हाँ भई, चाय-वाय तो बनवाओ।

श्रीमतीजी का पारा एक सौ पाँच पर पहुंच गया। ठीक भी है अभी तक तो चाय ही थी अब उसमें वाय और लग गया। चाय के साथ वाय का मतलब है पकौड़ी !

उस दिन पार्टी में वकील साहब भी थे। वे ऐसे मौक़ों की तलाश में ही रहते हैं। अपनी दार्शनिक मुद्रा में बोले, हाँ भाई पण्डितजी का प्रस्ताव तो त्रिपुरी काँग्रेस के पन्त-प्रस्ताव से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, हम लोग इस का बहु-सम्मति से नहीं सर्वसम्मति से समर्थन करते हैं।

श्रीमतीजी ने देखा कि अब मामूली दवा काम नहीं दे सकती। उन्होंने भैयाजी की तरफ़ देखा। भैयाजी हर घड़ी कोई-न-कोई गोरखधन्धा बाँधने में मास्टर हैं। दोनों में इशारे हुए और तब श्रीमतीजी ने कहा, चलिए, मैं आज आप लोगों को गुलाब रेस्टोरेण्ट में चाय पिलाऊँगी। वकील साहब ने उत्फुल्ल होकर इस प्रस्ताव का भी समर्थन किया और सब लोग उठ चले, पर श्रीमतीजी ऐसे रास्ते से चलीं कि वकील साहब का घर रास्ते में पड़ गया। वे सबको लिये उसमें घुस गयीं और उनके पुरुषार्थ से चायवाय ही नहीं, मामला हलवे तक पहुंच गया। वकील साहब बहुत कुलमुलाये, पर उनकी एक न चली।

यह बहाने का एक उत्तम उदाहरण है। कहिए, अब भी आप समझे या नहीं कि बहाना क्या चीज़ है?

“जी, खूब समझ गया। सचमुच आप-जैसा समझाने वाला बड़े भाग्य से मिलता है, पर ऐसा मालूम होता है कि आपकी राय यह है कि जब भगवान् के यहाँ बुद्धि बँट रही थी, तो आप अगली पंक्ति में थे और मैं सो रहा था। क्या बहाने के तक्कल उड़ा रहे हैं आप। मेरा प्रश्न यों फ़री होने वाला नहीं, ज़रा गहरा है। मैं पूछ रहा था कि यह बहाना आख़िर है क्या चीज़, पर आप क्या समझेंगे इस बात को। लीजिए, मैं ही बता रहा हूँ आपको अपने प्रश्न का उत्तर, बहाना एक परदा है।"

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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