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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

झेंपो मत, रस लो !


श्रीमती विद्यावती कौशल मूढ़े पर, हम कई आदमी अपनी कुरसियों पर और बातचीत 'कामायनी' के घेरे में। जाने क्या हुआ कि मूढ़ा लुढ़क गया और धम्म से धरती पर आ टिकीं, जैसे कोई बालक सड़क पर पड़े पैसे को अपने दूसरे साथियों से पहले दबोचने को धरती से आ लिपटे !

आदमी की आदत है कि दूसरे को बेवकूफ़ बनते देखता है, तो उसके फेफड़े और होठ खिल पड़ते हैं। शायद आदमी की इसी आदत ने नाटकों में जोकरों को जन्म दिया है। जोकर बेवकूफ़ न हो, तब भी बेवकूफ़ बनता है और हम हँसते हैं।

तो वे लुढ़कीं कि हम हँसे। आदमी की आदत है कि जब किसी पर वह हँसे, तो उसकी आँखें देखना चाहती हैं कि जिसे हँसा गया है, वह झेंपे-खिसियाए !

हम भी हँसे, तो अनचाहते भी चाहा ही कि वे झेंपें, पर हुआ यह कि वे अकेली ही हम तीन-चार से भी ज़्यादा ज़ोर से हँसीं और अपने मूढ़े पर आते-आते बोली, “वाह भाई, लाला लेट गये !"

अब एक अजब बात कि उनकी हँसी हमारे कानों में क्या पूँजी, हमारी हँसी एकदम खामोश और हम अपने में समाये हए-से।

बातचीत फिर अपनी जगह ज्यों-की-त्यों, पर मैं सोच रहा हूँ कि हुआ क्या? लगता है कुछ हुआ है, पर क्या हुआ है, यह नहीं लगता। मैं सोचता रहा और तब अचानक हाथ आया यह सूत्र- 'भूल हो जाए, बेवकूफ़ बन जाओ तब भी झेंपो मत, उसमें रस लो!'

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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