कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
मूलमन्त्र :
मूलमन्त्र (मोटो) सत्य का, तत्त्व का रहस्य समझने में सहायक होते हैं, तो सोचा संस्कृति और उसके वंशधरों का मूलमन्त्र यदि खोजा जा सके तो यह सुविधाजनक होगा।
खोजते, पन्ने उलटते, चिन्तन करते जहाँ सन्तोष पाया, वह यहाँ उपस्थित है। मैं आग्रही नहीं हूँ कि अपने सन्तोष को परिपूर्णता कहूँ, मायूँ या मानने को बाध्य करूँ।
क्या संस्कृति की भाव-दिशा अतीत में गायी गयी इस ऋचा में समायी नहीं है?
‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।'
मेरे अन्तर्यामी, मुझे असत् से सत् की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले चल।
असतो मा सद्गमय में संस्कृति की, तमसो मा ज्योतिर्गमय में सभ्यता समाज की और मृत्योर्मा अमृतं गमय में धर्म-दर्शन की दिशा का पूर्ण संकेत है।
असत् है पशुता-जंगलीपन, सत् है मनुष्यता-मनुष्य की संस्कारिता।
तसम्-अन्धकार-है पशु की असहायता, हिंस्रता और ज्योति है मनुष्य की अहिंसकता, सामाजिकता, सहकारिता।
मृत्यु है मरण के साथ जीवन की समाधि और अमरता है, जीवन का शाश्वत प्रवाह, आत्मा की अमरता, चेतनता और व्यापक चैतन्य सत्ता के साथ एकीकरण।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में