कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
कसौटी :
संस्कृति की कसौटी क्या है? हम कैसे निर्णय करें कि हमारा अमुक काम संस्कृति के अनुकूल है या नहीं? संस्कृति शब्द की लोकप्रियता ने उसे आकर्षक बना दिया है और हर प्रवक्ता एवं लेखक, हर सभा और संगठन अपने को संस्कृति का रक्षक कहना आवश्यक मानने लगा। इसी उलझन के अन्धकार में प्रकाश की माँग है-संस्कृति की कसौटी क्या है?
संस्कृति की कसौटी है पशुता। उचकिए नहीं, संस्कृति की कसौटी है पशुता, पर ज़रा बुद्धि के साथ। जिस परिस्थिति में पशु जो कुछ करता है, क्या हम भी वही करते हैं या उससे भिन्न? बस पशु से भिन्नता ही संस्कृति की कसौटी है।
पशु का स्वभाव है कि जहाँ जब जो जी में आया, कर लिया, पर मनुष्य का स्वभाव है जहाँ जब जो जी में आए, उसे सोचे कि यहाँ अब, यह करना उचित है या नहीं और उचित हो तो करें, नहीं तो रुक जाएँ; संक्षेप में बुद्धिपूर्वक संयम ही संस्कृति की कसौटी है।
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में