कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
उलझन :
इस कसौटी पर अपने आचरण को कसकर उसके अनुसार चलना कठिन नहीं है पर वह दलदल कहाँ है, जहाँ यह चलती गाड़ी अटककर फँस जाती है, फँस क्या बस धंस जाती है कि निकले न निकले?
दो में बातें होती हैं, व्यवहार चलता है। जबतक दोनों एकमत हैं, एक दूसरे के अनुकूल हैं, कोई बात नहीं, पर जब दोनों में मतभेद होता है, तो गरमी आती है, असहिष्णुता उमड़ती है, क्रोध भड़कता है। जी चाहता है कि सामने वाला हमारी बात मानने को विवश हो और न हो तो हम उसे ताक़त से पीस दें, मिटा दें, अपनी बात उससे मनवा लें।
यहाँ पशु और मनुष्य समान हैं। पशु में भी यह इच्छा सहज है और मनुष्य में भी, पर मनुष्य बुद्धिमान् है, इसलिए पशुओं में जहाँ इस इच्छा के फलस्वरूप झडप और हत्या ही होती है; मनष्य ने इसे समाज की एक सामूहिक प्रवृत्ति बना युद्ध का रूप दे दिया है।
तो युद्ध मनुष्य की पशुता का, संस्कृति-हीनता का सर्वोत्तम प्रदर्शन है और उलझन यह है कि संस्कृति की पताका थामे खड़ा मनुष्य इस युद्ध से कैसे बचे? सच तो यह है कि हमारी संस्कृति के इतिहास का सबसे बड़ा प्रश्न है ही यह, इतना गहन इतना जटिल प्रश्न कि हमारे राष्ट्र-पुरुषों को इसका उत्तर देने में कई हजार वर्ष लग गये !
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- उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
- यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
- यह किसका सिनेमा है?
- मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
- छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
- यह सड़क बोलती है !
- धूप-बत्ती : बुझी, जली !
- सहो मत, तोड़ फेंको !
- मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
- जी, वे घर में नहीं हैं !
- झेंपो मत, रस लो !
- पाप के चार हथियार !
- जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
- मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
- जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
- चिड़िया, भैंसा और बछिया
- पाँच सौ छह सौ क्या?
- बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
- छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
- शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
- गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
- जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
- उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
- रहो खाट पर सोय !
- जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
- अजी, क्या रखा है इन बातों में !
- बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
- सीता और मीरा !
- मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
- एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
- लीजिए, आदमी बनिए !
- अजी, होना-हवाना क्या है?
- अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
- दुनिया दुखों का घर है !
- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
- पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में