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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।


गाँधी ने कहा :

एक ओर हिंसा की सम्पूर्ण शक्ति और साधनों से सम्पन्न ब्रिटिश राज्य और दूसरी ओर निहत्थी उदास और असंगठित भारतीय जनता। पहला दूसरे की छाती पर यों सवार कि न प्रार्थना सुने, न चीत्कार और दूसरा यों दबा-घुटा कि हिलने में भी असमर्थ।

क्या दोनों में युद्ध सम्भव है? किसी ने हाँ नहीं भरी और सब दिशाओं में सन्नाटा छा गया। तब सुनाई दी गाँधी की गम्भीर वाणी-हाँ, सम्भव है और सचमुच सत्ताईस वर्षों में गाँधी ने असम्भव को सम्भव करके दिख दिया !

अभी तक युद्ध-शास्त्र का सिद्धान्त था-शत्रु को इतना कष्ट दो कि वह सह न सके, मिट जाए। अब यह सिद्धान्त हो गया-शत्रु को कष्ट न देकर स्वयं उसके द्वारा इतना कष्ट सहो कि शत्रु का हृदय बदल जाए, वह शत्रुता छोड़ दे।

अभी तक युद्ध का लक्ष्य था शत्रु का नाश करना, अब उसका लक्ष्य हो गया उसे मित्र बना लेना।

अभी तक विजय की कसौटी थी, जो अधिक मारेगा वह जीतेगा। अब कसौटी हो गयी, जो अधिक सहेगा वह जीतेगा।

और इस प्रकार गाँधी ने पशु-प्रवृत्ति युद्ध को मानवीय संस्कृति की कसौटी, पशु से भिन्न व्यवहार पर खरा उतार दिया। प्रसंगान्तर न हो, तो कहें-युद्ध और संस्कृति का एकीकरण ही विश्व के इतिहास को गाँधी की सबसे बड़ी देन है।

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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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