कहानी संग्रह >> बाजे पायलियाँ के घुँघरू बाजे पायलियाँ के घुँघरूकन्हैयालाल मिश्र
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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।
चिड़िया, भैंसा और बछिया
पेट तो भर गया, पर आधी रोटी थाली में शेष है। भीतर से एक ने ताना फैलाया, “अरे, खा भी लो, दो टुकड़े ही तो हैं; और दूसरे ने बाना भर दिया, तुम तो कभी जूठा छोड़ते ही नहीं, बस चार बार मुँह और चलाओ कि थाली साफ़।"
देख रहा हूँ ताना भी ठीक है और बाना भी ठीक, पर आहार-विहार में इतना भोला होता और ऐसी सिफ़ारिशें सुना करता तो अबतक तीन बार प्लूरिसी में मर चुका होता !
फिर छोड़िए मरने-जीने की बात, दो टुकड़ों के मोल रात-भर की खट्टी डकारें खरीदना, मुझे तो कुछ बुद्धि का व्यापार दिखाई नहीं देता।
मैं उठ खड़ा हुआ, पर इस आधी रोटी के सदुपयोग की बात मेरे मन में थी तो आधी रोटी हाथ में लिये, मैं बाहर आया कि ये चिड़ियों को चुगा दूं, पर देखता हूँ कि ठेले वाले का भैंसा सामने बँधा है।
चिड़ियों का हमारे जीवन से भला क्या सम्बन्ध? सुबह ही सुबह नींद उचटाने वाली चूं-धूं और घर में तिनके-बीटों का कूड़ा। हूँ : चली बड़ी चिड़िया की बच्ची कहीं की ! भैंसा हमारे लिए उपयोगी है, समाज का बोझ ढोता है, सौ काम करता है।
भीतर से किसी ने यह ताना-बाना पूरा कि मैं अपनी आधी रोटी लिये भैंसे की ओर बढ़ा, पर देखता हूँ, सामने ही खड़ी है पड़ोस के बाबूजी की बछिया। गाय के प्रति हिन्दू की सहज निष्ठा है। मैं उस ओर खिंच गया और बड़े लाड़ से वह रोटी बछिया को खिला दी।
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- चिड़िया, भैंसा और बछिया
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- बल-बहादुरी : एक चिन्तन
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